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तीर्थकर जीवन
१०६ छद्मस्थ अवस्था और केवली अवस्था का विभाग करके राजीमती ने भी उतना ही आयुष्य भोगा ।२९
भगवान् नेमिनाथ ने तीन सौ वर्ष कुमार अवस्था में और सात सौ वर्ष छद्मस्थ व केवली अवस्था में व्यतीत करके एक हजार वर्ष का आयूष्य भोगा।
प्रश्न यह है कि रथनेमि भगवान् के लघुभ्राता हैं। भगवान् तीन सौ वर्ष गृहस्थाश्रम में रहे हैं और रथनेमि तथा राजीमती चार सौ वर्ष । राजीमती और अरिष्टनेमि के निर्वाण में सिर्फ चोपन (५४) दिन का अन्तर है। ___ यद्यपि राजीमती और अरिष्टनेमि के निर्वाण काल में ५४ दिन का अन्तर है, इस सम्बन्ध में कोई पुरातन साक्ष्य दृष्टिगोचर नहीं होता। नियुक्ति, भाष्य, चूणि या प्राचीन चरित्र ग्रन्थों में ऐसा उल्लेख नहीं मिलता, तथापि पश्चाद्वर्ती कवियों की रचनाओं में ऐसा उल्लेख मिलता है ।३१ यदि इस उल्लेख को प्रामाणिक मान लिया जाय तो इसका निष्कर्ष यह निकलता है कि राजीमती श्री अरिष्टनेमि से दौ सौ वर्ष पश्चात् दीक्षित हई थी। मगर अरिष्टनेमि के कैवल्य प्राप्त कर लेने के पश्चात् भी राजीमती का दो सौ वर्षों तक दीक्षित न होना और गृहस्थाश्रम में रहना एक चिन्तनीय विषय
(ग) चतुरब्दशतीं गेहे छद्मस्थो वत्सरं पुनः । केवलो पञ्चाब्दशतीमित्यायूरथनेमिनः ।।
-त्रिषष्टि० ८।१२।११२ २६. ईदृगायुः स्थिती राजीमत्यप्यासीत्तपोधना। कौमारछद्मवासित्व - केवलित्वविभागतः ।।
–त्रिषष्टि० ८।१२।११३ ३०. (क) तिन्नेव य वासप्तया कुमारवासो अरिट्टनेमिस्स । ___ सत्त य वाससयाई सामण्णे होइ परियाओ॥
-आवश्यक नियुक्ति ३२० (ख) कल्पसूत्र सूत्र १६८, पृ० २३८, देवेन्द्र मुनि सम्पादित (ग) अरिष्ठनेमेस्त्रीणि वर्षशतानि कुमारवासः, राज्यानभ्युपगमान् राज्यपर्यायाभावः सप्त वर्षशतानि भवति श्रामण्य पर्यायः
-आवश्यक मलयगिरिवृत्ति पृ० २१३
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