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जन्म एवं विवाह प्रसंग मांसभोजी राजा आएंगे, उनके लिए नाना प्रकार का मांस तैयार करने के लिए यहाँ पर पशुओं का निरोध किया गया है । ___इस प्रकार सारथी की बात को सुनकर ज्यों ही भगवान् ने मृगों के समूह को देखा, उनका हृदय प्राणी दया से सराबोर हो गया। वे अवधिज्ञानी तो थे ही, सोचने लगे -- ये पशु जंगल में रहते हैं, तृण खाते हैं और कभी किसी का कुछ भी अपराध नहीं करते तो भी लोग अपने भोग के लिए इन्हें क्यों पीड़ा पहुँचाते हैं। इस प्रकार अरिष्टनेमि चिन्तन के सागर में गहराई से डुबकी लगाने लगे। उसी समय लौकान्तिक देव आये, उन्होंने भी उद्बोधन के रूप में धर्मोद्योत करने की प्रार्थना की। __मृगों के हितैषी भगवान शीघ्र ही मृगों को मुक्त कर द्वारिका लौट आये।८६
प्रस्तुत वर्णन की अपेक्षा उत्तराध्ययन सूत्र और त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, चउप्पन्नमहापुरिस चरियं, भव-भावना आदि ग्रंथों का वर्णन अधिक तर्कसंगत व हृदयस्पर्शी है।
हिंसा को रोकने के लिए, जन-जन के अन्तर्मानस में मांसाहार के प्रति विद्रोह की भावना उबुद्ध करने के लिए अरिष्टनेमि विना विवाह किये ही उलटे पैरों लौट गये । जो कार्य वर्षों तक उपदेश देकर वे नहीं कर सकते थे वह कार्य कुछ ही क्षणों में तोरण से ८४. (क) देवैतद्वासुदेवेन त्वद्विवाहमहोत्सवे । ___ व्ययीकर्तु मिहानीतमित्यभाषन्त तेऽपि तम् ॥
- उत्तरपुराण ७१।१६३ (ख) अकथयत् प्रणतः स कृताञ्जलिः क्षितिभुजा मिह मांसभुजां विभो। तव विवाहविधौ मृगरोधनं विविधमांस निमित्तमनुष्ठितम् ।।
-हरिवंशपुराण ५५।८८, पृ० ६२६ ८५. वसन्त्यरण्ये खादन्ति तृणान्यनपराधकाः । किलैतांश्च स्वभोगार्थ पीडयन्ति धिगीदृशान् ।
-उत्तरपुराण ७१।१६४ ८६. लघु विमुच्य मृगान् मृगबांधवो नृपसुतैः प्रविवेश पुरं प्रभुः । सपदि तत्र नृपासनभूषणं नुनुवुरेत्य पुरेव सुरेश्वराः ।
-हरिवंशपुराण ५५।१०४
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