SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण मत्स्य को आकृति का उनका उदर था। वे दस धनुष्य लम्बे थे।४१ उनका स्वर बहुत ही मधुर था। ___ शारीरिक सौन्दर्य की तरह ही उनका आन्तरिक सौन्दर्य भी कम आकर्षक नहीं था। उनका हृदय अत्यन्त उदार था। राजकुमार होने पर भी राजकीय वैभव का तनिक मात्र भी अभिमान उन्हें स्पर्श न कर सका था। उनकी वीरता-धीरता योग्यता एवं ज्ञानगरिमा को निहार कर सभी लोग चकित थे। वे अपने अनुपम विवेक, विचार, शिष्टता एवं गाम्भीर्य प्रभृति हजारों गुणों के कारण जन-जन के अत्यधिक प्रिय हो चुके थे। पराक्रम दर्शन : ___ जब अरिष्टनेमि आठ वर्ष के हुए तब मथुरा में श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर डाला ।४२ राजा जरासंध यादवों पर कुपित हो गये । मरने के भय से सभी यादव पश्चिमी समुद्र तट पर चले गये । वहाँ उन्होंने नव्य-भव्य द्वारिका नगरा का निर्माण किया। सभी यादव सुखपूर्वक वहां रहने लगे। कुछ समय के पश्चात् बलराम और श्रीकृष्ण ने जरासंध को मार दिया और वे तीन खण्ड के अधिपति राजा बन गये ।3।। ३८. सोऽरिट्ठनेमिनामो उ, लक्खणस्सरसंजुओ। अट्ठसहस्सलक्खणधरो, गोयमो कालगच्छवी ॥ -उत्तराध्ययन अ० २२१५ ३६. वज्जरिसहसंघयणो, समचउरंसो झसोयरो । ---उत्तराध्ययन २२६ ४०. उत्तराध्ययन २२।६ ४१. (क) समवायाङ्ग सूत्र १०१४ (ख) ज्ञाताधर्म अ० ५।५८, पृ० ६६ (ग) निरयावलिका व०५।१ ४२. जातो अट्टवरिसो, एत्थंतरे य हरिणा कसे विणिवाइए। -उत्तराध्ययन सुखबोधा पृ० २७८ ४३. (क) त्रिषिष्टशलाकापुरुष चरित्र, पर्व ८, सर्ग ५ से आठ तक (ख) चउप्पन्नमहापुरिसचरियं (ग) सुखबोधा पु० २७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy