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________________ ७८ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण अन्तकृदशांग की वृत्ति के अनुसार समुद्रविजय आदि दस भाइयों के नाम इस प्रकार है :-(१) समुद्रविजय, (२) अक्षोभ्य, (३) स्तिमित, (४) सागर (५) हिमवान् (६) अचल (७) धरण, (८) पूरण, (६) अभिचन्द्र, (१०) वसुदेव । नामकरण : भगवान् अरिष्टनेमि के नामकरण के सम्बन्ध में विद्वानों में विभिन्न मत हैं। आचार्य हेमचन्द्र के अभिमतानुसार जब भगवान् गर्भ में थे तब माता शिवा ने रिष्टरत्नमयीनेमि (चक्रधारा) स्वप्न में देखी थी अतः पुत्र का नाम अरिष्टनेमि रखा गया ।३२ __ आचार्य जिनसेन ने उपरोक्त कथन का उल्लेख न करके, लिखा है कि जब इन्द्र भगवान् को मेरु पर्वत पर अभिषेक के लिए ले गये, तब अभिषेक के पश्चात् सुन्दर वस्त्राभूषणों से वेष्टित कर उनका अरिष्टनेमि नाम रखा और उनकी संस्तवना की।3। गुणभद्र ने लिखा है कि इन्द्र ने भगवान का अभिषेक कर वस्त्राभूषण पहनाये और 'ये समीचीन धर्मरूपी चक्र की नेमि हैचक्रधारा है' एतदर्थ उन्हें नेमि नाम से सम्बोधित किया।३४ ३१. दसण्हं दसाराणं ति तत्रैते दश-- समुद्रविजयोऽक्षोभ्यः स्तिमितः सागरस्तथा । हिमवानचलश्चैव, धरणः पूरणस्तथा ।। अभिचन्द्रश्च नवमो, वसुदेवश्च वीर्यवान् । वसुदेवानुजे कन्ये, कुन्ती माद्री च विश्रुते ॥ -अन्तकृद्दशांग, वृत्ति १।१, ३२. स्वप्नेऽरिष्टमयी दृष्टा चक्रधारात्र गर्भगे। मात्रा तस्यारिष्टनेमिरित्याख्यां तत्पिता व्यद्यात् ।। -त्रिपष्टि० पर्व ८, सर्ग ५, श्लोक १६८ ३३. दुकूलमणिभूषणस्रगनुलेपनोद्भासितं प्रयोज्य । शुभपर्वतं विभुमरिष्ट नेम्याख्यया ॥ सुरासुरगणास्ततः स्तुतिभिरित्यत्थमिन्द्रादयः । परीत्य परितुष्टुवुजिन मिनं सूपृथ्वी श्रियाम् ।। -हरिवंशपुराण ३८।५५, पृ० ४८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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