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________________ प्रकाशकीय 'प्राकृत-भारती' के द्वितीय पुष्प के रूप में राजस्थान का जैन साहित्य' नामक शोधनिबन्धों का संग्रह पाठकों के कर-कमलों में अर्पित करते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। श्रमण भगवान महावीर की 2500वीं निर्वाण शताब्दी के शुभ अवसर पर राजस्थान सरकार ने राज्य स्तर पर शताब्दी समारोह समिति की स्थापना की थी। समिति ने साहित्यिक योजना के अन्तर्गत तीन पुस्तकों के प्रकाशन का निर्णय लिया था-1. कल्पसूत्र (सचिन), 2. राजस्थान का जैन साहित्य, और 3. राजस्थान की जैन कला और स्थापत्य । भगवान् महावीर का दर्शन और लोक-कल्याणमयी सार्वजनीन विचारधारा से सम्बन्धित साहित्य का प्रचार-प्रसार सर्वदा प्रवर्धमान रूप से होता रहे, इस दष्टि-बिन्दू को ध्यान में रखकर, शताब्दी समारोह के पश्चात् 'प्राकृत-भारती' की स्थापना की गई और उक्त ग्रन्थों के कार्य को पूर्ण करने का भार 'प्राकृत-भारती' को सौंप दिया गया। राजस्थान प्रदेश के निवासियों एवं इस प्रदेश में विचरण करने वाले मुर्धन्य विद्वानोंश्रमणों ने शताब्दियों से धर्म एवं धर्मेतर सभी विषयों तथा समग्र विधाओं पर मौलिक एवं व्याख्यात्मक साहित्य-सर्जन कर सरस्वती की अभूतपूर्व सेवा की है। इन मनीषियों ने केवल देववाणी-संस्कृत को ही माध्यम नहीं बनाया, अपितु संस्कृत के साथ-साथ तत्कालीन जन-भाषाओं प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी और हिन्दी भाषा में भी रचनाएं कीं और इन भाषाओं को सक्षम बनाने में हाथ बटाया । प्रत्येक साहित्यकार और साहित्य का समीक्षात्मक मल्यांकन अनेक खण्डों में किया जा सकता है किन्तु वह समय तथा श्रमसाध्य है। इसी कारण विद्वान् लेखकों ने प्रस्तुत पुस्तक में राजस्थान के ज्ञात विद्वानों द्वारा रचित तथा प्राप्त समस्त साहित्य का दिग्दर्शन कराने का प्रयत्न किया है। विज्ञ लेखकगण, विद्वान सम्पादक मण्डल आदि जिन्होंने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रकाशन में अपना सौहार्दपूर्ण योगदान देकर संस्थान को गौरवान्वित किया है उसके लिये मैं अपनी ओर से एवं संस्थान की ओर से इन सब का हृदय से आभारी हूं। महोपाध्याय विनयसागरजी का इस पुस्तक के सम्पादन एवं व्यवस्था का कार्यभार संभालने में विशेष सहयोग रहा है एतदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं। मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक साहित्य के क्षेत्र में शोधार्थियों के लिये न केवल पथप्रदर्शक होगी अपितु शोध के क्षेत्र में नये आयाम भी प्रस्तुत करने में समर्थ होगी। दिनांक 28-3-1977 देवेन्द्रराज मेहता, सचिव, प्राकृत-भारती, जयपुर ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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