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8. प्रो. प्रवीणचन्द जैन :--प्रो. प्रवीणचन्द जी जैन का जन्म सन 1909 जयपुर में श्री लक्ष्मणलाल जी पाटनी के यहां हुप्रा। आपकी प्रारम्भ से ही अध्ययन की ओर विशेष रुचि रही। आपने एम. ए. हिन्दी व संस्कृत, शास्त्री व साहित्यरत्न की परीक्षा उत्तीर्ण की। शिक्षा जगत में आपका विशेष योगदान रहा तथा भरतपुर, डूंगरपुर, बीकानेर, वनस्थली महाविद्यालयों के वर्षों तक प्राचार्य रहे । आज कल आप उच्चस्तरीय अनुसंधान केन्द्र, जयपुर के संचालक हैं तथा पौराणिक साहित्य पर विशेष अनुसन्धान में लगे हुए हैं ।
___9. डा. हुकुमचन्द भारिल्ल :--आप हंसराज भारिल्ल के पुत्र हैं। आप शास्त्री, न्यायतीर्थ, साहित्य रत्न तथा एम. ए., पी. एच. डी. हैं। आप हिन्दी के अच्छे विद्वान् हैं। ग्राप उच्च कोटि के निबन्धकार तथा प्राध्यात्मिक वक्ता हैं। गत 10 वर्षों से आप जयपूर में पं. टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के संयक्त मंत्री हैं। आपकी कितनी ही रचनायें प्रकाशित हो चुकी हैं-बालबोध पाठमाला भाग 1 से 3, वीतराग विज्ञान पाठमाला भाग 1 से 3, तीर्थंकर महावीर, भगवान महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ तथा पंडित टोडरमल व्यक्तित्व और कृतित्व आदि। आपकी भाषा सरस व प्रांजल है। आपकी भाषा का नमूना इस प्रकार है:--
"भोले भक्तों ने अपनी कल्पना के अनुसार तीर्थंकर भगवन्तों में भी भेदभाव कर डाला है। उनके अनुसार पार्श्वनाथ रक्षा करते हैं तो शान्तिनाथ शान्ति । इसी प्रकार शीतलनाथ शीतला (चेचक) को ठीक करने वाले हैं और सिद्ध भगवान को कुष्ठ रोग निवारण करने वाला कहा जाता है। भगवान तो सभी वीतरागी, सर्वज्ञ, एक सी शक्ति, अनन्तवीर्य के धनी हैं। उनके कार्यों में यह भेद कैसे सम्भव है ? एक तो भगवान कुछ करते ही नहीं है, यदि करें तो क्या शान्तिनाथ पार्श्वनाथ के समान रक्षा नहीं कर सकते ? ऐसा कोई भेद तो अरहन्त सिद्ध भगवन्तों में है नहीं।"
(सर्वोदय तीर्थ पृष्ठ 115)
10. डा. कमलचन्द सौगानी :--डा. सौगानी का जन्म 25 अगस्त 1928 को जयपुर में हमा। आप उदयपुर विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के प्रोफेसर एवं अपने विषय के अधिकारी विद्वान हैं। आप 'एथिकिल डाक्ट्रिन्स इन जैनिज्म' शोध प्रबन्ध पर राजस्थान विश्वविद्यालय से पी-एच. डी. की उपाधि से सम्मानित हो चुके हैं। मनि श्री मिश्रीलाल जी महाराज तथा पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ द्वारा संकलित 'अर्हत् प्रवचन' तथा 'प्रवचन प्रकाश' के हिन्दी रूपान्तर में आपका बहुत बड़ा हाथ रहा है ।
11. पं. मूलचन्द शास्त्री :--श्री शास्त्री जी वर्षों से श्री महावीर जी (राज.) में रह कर मां सरस्वती की सेवा कर रहे हैं। आप हिन्दी व संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् हैं। आपने जैन दर्शन के उच्च ग्रन्थ प्राप्त-मीमांसा तथा युक्त्यनुशासन का विस्तृत अनुवाद किया है। स्वतन्त्र ग्रन्थ "जैन दर्शन का तुलनात्मक अध्ययन" अभी अप्रकाशित है। आपने महाकवि कालिदास के मेघदूत के अन्तिम चरण की समस्या पूर्ति करते हुए राजल की विरह वेदना को व्यक्त करने वाले 'वचन-द्रतम' संस्कृत काव्य की रचना की है। साथ ही उसका पद्यानुवाद तथा