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आमुख
जैन धर्म का दर्शन, न्याय तथा संस्कृति--ये भारतीय परम्परा के बड़े समृद्ध और प्राचीनतम तत्व हैं। इस स्थिति का प्रमाण जैन साहित्य है जो प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी एवं कई स्थानीय भाषाओं में मिलता है। ये साहित्य श्रागम, पुराण, कथा, चरित्र, काव्य, निबन्ध आदि के रूप में उपलब्ध है। कुछ साहित्य ऐसा है जो कवितानों, कथानों तथा गीतों के द्वारा जैन धर्म के गूढ़ सिद्धान्तों को समाजोद्धार और राष्ट्रोत्थान के स्वर को मुखरित करने में सहयोगी सिद्ध हुना है | परन्तु इस वैज्ञानिक युग में इस साहित्य का अधिकांश भाग या तो प्रकाशित है या श्रप्राप्य है । श्रतएव जैन धर्म और संस्कृति के संबंध में लेखन एवं अध्ययन का कार्य अनुसंधानकों के लिये एक कठिनाई का कारण बना हुआ है । कई जैन भण्डार ऐसे हैं जिनमें निहित विद्या-निधि के दर्शन का लाभ भी सुलभ नहीं है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में गणमान्य विद्वानों के लेखों ने जैन साहित्य को प्रकाश में लाने का सफल प्रयत्न किया है। इन लेखों में प्राचीन लेखकों, साधकों और ग्रन्थों की समीक्षा देकर जिज्ञासुनों की ज्ञान-पिपासा को किसी सीमा तक बुझाने में सफलता प्राप्त की है। अनुसंधानकर्तानों के लिए भी यह ग्रन्थ पथ-प्रदर्शक का काम करेगा, ऐसी मेरी मान्यता है । इसमें दिये गये साहित्य और साहित्यकारों का परिचय महत्वशाली जैन साहित्य की अपार विश्लेषण तो नहीं करता परन्तु खोज की दृष्टि से समुचित उद्बोधन अवश्य करता है । में प्राकृत भारती एवं संचालक मंडल को बधाई देता हूं कि इस प्रकाशन के कार्य का शुभारंभ कर उसने जैन साहित्य की प्रशंसनीय सेवा की है ।
राशि का सर्वागीण
गोपीनाथ शर्मा, निदेशक,
राजस्थान अध्ययन केन्द्र, राजस्थान विश्व विद्यालय, जयपुर ।