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________________ 334 काम कर रहे हैं। एक भौतिक और दूसरा श्राध्यात्मिक । भौतिक यन्त्र विविध सुख सुविधा व कार्यों की रफ्तार बढ़ाता है, और उसके वेग को कम ज्यादा करता है, तो अध्यात्म यन्त्र दिशा दर्शन देता है, हानि-लाभ का परिज्ञान करवाता है और मंजिलें मकसद तक पहुंचाने का प्रयास करता है । शक्ति ( हिंसा) के द्वारा हम विश्वविनाशक तत्त्व के निर्माताओं का मन, मस्तिष्क बदल सकते हैं और उनके प्रयासों की अनुपयुक्तता को समझा सकते हैं ।" ( 'हिंसा की बोलती मीनारें' से उद्धृत, पुष्ठ - 161 ) 'प्रेरणा के बिन्दु' में मुनि श्री ने छोटे-छोटे रूपकों के माध्यम से जीवन यात्रा पर बढ़ने वाले पथिकों को आस्था, विश्वास और साहस का सम्बल लुटाया है । 14. श्री भगवती मुनि 'निर्मल'-- आप समाज के युवा साहित्यकार और प्रबुद्ध तत्त्व चिन्तक हैं। कवि, कथाकार और ग्रागम व्याख्याता के रूप में श्रापका व्यक्तित्व उभर कर सामने आ रहा है । 'लो कहानी सुनो', 'लो कथा कह दूं' पुस्तकों में धर्म-ग्रन्थों, इतिहास, पुराण, प्रकृति आदि विविध क्षेत्रों तथा जीवन की साधारण घटनाओं से प्रसंग जुटाकर छोटी-छोटी कहानियां लिखी गयी हैं जो बड़ी प्रेरणादायी और जीवन के उत्थान में सहायक हैं । आपकी भाषा प्रभावमयी और शैली रोचक है । 'आगम युग की कहानियां' भाग-1, 2 में आगमिक धरातल से प्रेरित होकर कहानियां लिखी गई हैं । पठन से तत्कालीन युग की सामाजिक और सांस्कृतिक झांकी भी मिलती चलती है । 'प्रेरणा के प्रकाश स्तम्भ', 'जीवन के पराग कण', बिखरे पुष्प, 'अनुभूति के शब्द शिल्प' आदि प्रापकी अन्य कृतियां हैं जिनमें अध्यात्म जगत से निसृत अनुभूत विचारों को कथात्मक और गद्य काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है । एक उदाहरण देखिए--' इनके 'कटोरा पास में रखने से प्यास नहीं बुझेगी, उसमें रखे हुए पानी को अपने गले में उतारना होगा । शरीर की पूजा छोड़कर आत्मा के सहज स्वाभाविक गुणों को अपनाना ही सच्चे साधक का लक्ष्य होना चाहिए। शरीर की पूजा तो अनन्त काल से होती ही रही है, उससे श्रात्मा भटकी है, किनारे पर नहीं आयी । बहुधा साधक ने आत्मा के गुणों के गीत तो गाये, परन्तु उनमें आत्मा को भिगो कर उसे तृप्त नहीं किया ।' ( अनुभूति के शब्द शिल्प से उद्धृत, पृष्ठ- 108 ) 15. श्री रमेश मुनि- आप मेवाड़ भूषण श्री प्रतापमलजी म. के विद्वान शिष्य हैं । तत्त्व चिन्तक और सफल afa होने के साथ साथ श्राप सरस कथाकार भी हैं । 'प्रताप कथा कौमुदी' के पांच भागों में जैन आगमों और जैन चरित्रों में आये हुए विविध प्रसंगों को लेकर आपने जो कथायें लिखी हैं वे बड़ी प्रेरणादायी हैं । आप में वर्णन की क्षमता, चित्रोपमता तथा भाषा का अच्छा प्रवाह है। 'भगवान् महावीर के पावन प्रसंग' में आपने भगवान महावीर के 65 घटनात्मक और 22 संवादात्मक प्रसंगों को बड़े ही रोचक कथात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है । 'चिन्तन के आलोक में सामाजिक तथा दार्शनिक चिन्तन के धरातल से लिखे गये श्रापके छोटे-छोटे सुभाषित संगृहीत है । इनका अध्ययन करते समय शास्त्र और लोकजीवन की अनुभूति साथ-साथ होती चलती है । एक उदाहरण देखिए- 'कीमती जवाहरात जैसे सोना, मणि माणिक्य, हीरे, पन्ने, रत्न आदि को मेधावी मानव तिजोरी में छिपा कर रखता है । कारण कि बहुमूल्य वस्तु बराबर नहीं मिला करती है। उन्हें पाने के लिए उन पर बहुतों की आंखें ताका करती हैं। थोड़ी सी असावधानी हुई कि माल, माल
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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