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हिन्दी जैन साहित्य और साहित्यकार-2
अगरवाद न हटा
महोपाध्याय विनय सागर
राजस्थान प्रान्त ज कई विभागों में विभक्त था तब जो प्रदेश ब्रज व पंजाब के मासपास का था उसमें हिन्दी का प्रभाव व प्रचार अधिक रहा, जो प्रदेश गजरात से संलग्न था वहां पर गुजराती भाषा का प्रभाव अधिक रहा जो स्वाभाविक ही है। बाकी सारे प्रदेश को भाषा को राजस्थानो कहा जाता है, जिसको कई शाखाये व बालियां हैं। राजस्थानी भाषा का प्राचीन नाम मरु या मारवाड़ी भाषा था ।
__हिन्दी मूलतः जिसे खड़ी बोली कहा जाता है, वह तो मुसलमानी साम्राज्य के समय विकसित हुई। ब्रज हिन्दी का दूसरा साहित्यिक रूप है। प्राचीन हिन्दी साहित्य सवधिक ब्रज भाषा का है जिसे कई ग्रन्थों में "ग्वालरो" नाम भी दिया गया है, क्योंकि ग्वालियर के आसपास के क्षेत्र में इस भाषा का अधिक प्रचार व प्रसार रहा है। राजस्थान के भी कई साहित्यकारों ने "ग्वालेरी भाषा" का उल्लेख किया है। हिन्दी साहित्य वैसे अवधी आदि में भी मिलता है,पर राजस्थान में ब्रज भाषा और खड़ी बोली, हिन्दी को इन दोनों उप-भाषामों का ही अधिक प्रसार रहा है।
मुगल साम्राज्य के समय से राजस्थान में हिन्दी का प्रचार बढ़ता रहा। इसलिये हिन्दी जन कवि सं. 1600 के बाद के ही अधिक मिलते हैं। इससे पहले की सारी रचनायें राजस्थानी में हैं। अभी तक जो श्वेताम्बर हिन्दी कवियों के सम्बन्ध में खोज हुई है, उनमें सर्वप्रथम कवि मालदेव हैं। ये अपने समय के बहुत समर्थ कवि थे। उसका भार उनकी रचनाओं का समुचित विवरण नीचे दिया जा रहा है:
1. कवि मालदेव
बडगच्छ की भटनेर शाखा के प्रभावशाली आचार्य मावदेवसरि के शिष्य थे। इन्होंने अपनी रचनामों में अपना संक्षिप्त नाम "माल" का उपयोग किया है। भटनेर, सरसा के आसपास इस गच्छ का और इस कवि का अधिक विचरण तथा अधिक प्रभाव रहा है। यद्यपि सरसा अभी हरियाणा प्रदेश में है किन्तु पहले राजस्थान विशेषतः बीकानेर के राजाओं से ही शासित था। कवि ने अपने गच्छ और गुरु के सिवाय अपना विशेष परिचय रचनामों में नहीं दिया है। रचता काल का उल्लेख भी केवल दो रचनाओं में किया है। सं. 1612-1668 अर्थात् 56 वर्ष तक कवि रचना करता रहा है। इस लम्ब काल को देखते हुए तो उनको रचनायें बहुत अधिक मिलनी चाहिये, परन्तु भटनेरो बडगच्छ शाखा का भण्डार सुरक्षित नहीं रहने से कवि की छोटी-बड़ी 30-40 रचनाय हो अब तक उपलब्ध हई हैं। प्राकृत, संस्कृत और हिन्दी राजस्थानी में गद्य और पद्य में कवि लिखता रहा है। यहां वो उनमें से हिन्दी रचनाओं का विवरण देना ही अभीष्ट है। यद्यपि कवि राजस्थान का होने के कारण इसका हिन्दी राजस्थानी मिश्रित है, फिर भी अन्य राजस्थानी कवियों की अपेक्षा कति रचनामों में हिन्दी कोही प्रधानता है। कवि की अधिकांश रचनायें मप्रकाशित हैं। उसकी
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