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________________ 248 उपदेश रत्न कथा कोष: यह उपदेशात्मक कथाओं का विशाल संग्रह है, जो करीब 108 विषयों से संबंधित है। कथाएं अत्यन्त सुरुचिपूर्ण, साहित्यिक एवं पागम बुद्धि की परिचायक हैं। कहीं-कहीं दोहे व गीतिकाएं भी कथाओं में दी गई हैं। कथामों में कथावस्तु प्रवाहपूर्ण है। इन कथाओं का संग्रह संकलन किसी एक समय अथवा एक स्थान पर नहीं हरा, फलतः इन पर मेवाडी, मारवाडी ढुंढाडी और प्रारंभिक हिन्दी की छाप दृष्टिगोचर होती है। राजस्थानो कथा साहित्य के लिये यह कथाकोष अत्यन्त महत्वपूर्ण और मूल्यवान है। कृति की प्रथम कथा इस प्रकार शुरू हुई "बसंतपूर गामे नयर। तिण सैइर में एक नगर सेठ। तिण के पांच पत्र । छोटाई छोटा बेटा रो नाम मोतीलाल । मां बाप री प्राग्या में तीषो पण प्रकृति करडी घणी। मां बाप विचार यो प्री प्रादमी करडो क्रोधी अहंकारी। मां नी माया सू झगडो करे । भोजायां सू नित लडे। लोगा सं लडे। कलहगारो घणो पिण--" दृष्टांत : राजस्थानी में दृष्टान्त अथवा संस्मरण सर्व प्रथम लिखने का श्रेय जयाचार्य को ही है। इस तरह की पाप की तीन गद्य रचनायें मिलती हैं। भिक्ख दृष्टान्त, श्रावक दृष्टान्त और हेम दृष्टान्त । प्रथम कृति में प्राचार्य भीखणजी के 312 दृष्टान्त हैं। इन्हें मुनि हेमराज जी से सुनकर जयाचार्य ने लिखा। इसका रचना संवत् 1903 कार्तिक शुक्ला 13 रविवार और स्थान नाथद्वारा है। ये प्रायः व्यंग्यात्मक किन्तु कुशाग्र बुद्धि के परिचायक हैं। दूसरी कृति में तत्वज्ञ एवं श्रद्धा भक्ति रखने वाले श्रावकों के 32 दृष्टांत हैं और तीसरी में मुनि हेमराज जी के 37 दृष्टान्त हैं। इसमें कुछ दृष्टान्त भारमल जी स्वामी के भी हैं। गणविसुद्धिकरण हाजरी : आचार्य भीखणजी ने तेरापन्थ धर्म-संघ को संगठित व अनुशासित रखने के लिये जो मर्यादाएं बनाई, जयाचार्य ने उन्हें संकलित कर विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत कर दिया। इस वर्गीकृत रूप को ही 'गण विसुद्धिकरण हाजरी' अथवा संक्षेप में हाजरी कहा जाता है। ये कुल 28 हैं। इनमें संघीय जीवन की अनेक मर्यादाएं, शिक्षाएं तथा मावश्यक सूचनाएं हैं। मर्यादाएं : ये विधान विषयक दो कृतियां हैं। प्रथम कृति बडी मर्यादा कहलाती है। इसमें के गोचरी, विहार, वस्त्र-पाव प्रादि की मर्यादाएं हैं। द्वितीय छोटी मर्यादा है। इसमें साधुओं के आहार संबंधी मर्यादाएं ही दी गई हैं। भाचारांग टब्बा : शीलोकाचार्य एवं पायचन्दसूरिकृत भाचारांग सूत्र के टब्बे के आधार को ध्यान में रखते हुए माचारांग सूत्र का राजस्थानी में यह सरल किन्तु विस्तृत टब्बा जयाचार्य ने वि. सं. 1919 की फाल्गुण शुक्ला 1 को बनाया है।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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