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________________ में अध्यात्म, भक्ति, विरह तथा नीति आदि विभिन्न विषयक हैं । पार्श्वदास के पद विभिन्न प्रतिलिपियों के पाठ सम्पादन के आधार पर पार्श्वदास पदावली के रूप में दिगम्बर जैन समाज अमीरगंज, टौंक द्वारा प्रकाशित करवाये जा चुके हैं । 19. घेतसी साहः 824 इन्होंने नेमजी की लू हरि लिखी । इस रचना में राजमति के बारह महीनों के वियोग का वर्णन है । यह रचना तेरहृपंथी मन्दिर, टौंक के ग्रन्थांक 50 ब में संग्रहीत है । 20. पेतसी बिलाला: इनकी 'सील जखडी' में नारी निन्दा की गई है । नं. 50 के पृष्ठ 195 पर अंकित है । 21. डालूरामः - यह सवाई माधोपुर के अग्रवाल श्रावक थे । इन्होंने कुछ पूजाओं के अतिरिक्त संवत् 1895 में 'पंच परमेष्ठीगुण स्तवन' लिखी । 22. नन्दरामः -- 23. रामदास:--- यह रचना तेरहपंथी मन्दिर के गुटका यह बखत रा के पुत्र थे 1 इनके पद तेरहपंथी मन्दिर, टोंक में ग्रन्थांक 50 में पृष्ठ 208-213 पर मिल हैं । तेरहपंथी मन्दिर, टोंक के ग्रन्थांक 100 ब के पृष्ठ 120-122 पर इनकी रचना 'विनती' संग्रहीत है । 25. रामचन्द्रः- 24. मूलकचन्दः तेरहपंथी मन्दिर टौंक के ग्रन्थांक 100 ब के पृष्ठ 146-148 पर इनकी रचना 'विनती' अंकित है । संवत् 1957 में पंडित शिवदत्त द्वारा लिखी गई इनकी एक रचना 'चौबीस तीर्थंकर पूजा' जैन मन्दिर निवाई में प्राप्त है । राम उपनाम से मिलने वाले इनके कुछ पद दिगम्बर जैन शोध संस्थान, जयपुर में संग्रहीत हैं । 26. भविलाल : संवत् 1958 में लिखी 'छंदबद्ध समव शरण पूजा' जैन मन्दिर निवाई में उपलब्ध है ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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