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________________ 111 सेवाराम कुछ समय तक जयपुर में भी रहे। लेकिन पं. टोडरमलजी की मृत्यु के पश्चात इन्होंने जयपुर छोड़ दिया तथा डीग एवं मालवा आदि में चले गये । पाटनीजी स्वभाव से भी साहित्यिक थे। (34) ब्रह्म चन्द्रसागरः ये राजस्थानी जैन संत थे तथा सोजत नगर इनका प्रमुख साहित्यिक केन्द्र था। ये भट्टारक रामसैन के अन्वय में होने वाले भ. सुरेन्द्रकीर्ति के प्रशिष्य एवं सकलकीर्ति के शिष्य थे। सोजत नगर में रहते हये ही इन्होंने संवत् 1823 में श्रीपाल चरित की रचना समाप्त की थी। काव्य की भाषा एवं शैली दोनों ही उत्तम है तथा वह विविध छन्दों में निबद्ध की गयी है। ब्रह्मचन्द्रसागर की एक और रचना पंच परमेष्ठि स्तुति प्राप्त होती है। कवि ने उसे भी सोजत नगर में ही सम्पूर्ण की थी। (35) बख्तराम साहः कविवर बख्तराम साह इतिहास, सिद्धांत एवं दर्शन के महान् विद्वान् थे। ये भट्टारकीय परम्परा के पण्डित थे। इन्होंने मिथ्यात्वखण्डन लिख कर भट्टारक परम्परा का खुला समर्थन किया। जयपुर नगर के लश्कर का दिगम्बर जन मन्दिर इनका साहित्यिक केन्द्र था। 'बुद्धिविलास' इनकी महत्वपूर्ण कृति है जिसका इतिहास से पूर्ण संबंध है । कवि ने इसमें तत्कालीन समाज, राजव्यवस्था एवं जयपुर नगर निर्माण प्रादि का अच्छा वर्णन किया है यह उनकी संवत् 1827 की कृति है। बख्तराम चाकसू के निवासी थे। इनके पिता का नाम प्रेमराज साह था जो वहीं रहते थे। लेकिन कुछ समय पश्चात् कवि जयपुर आकर रहने लगे। मिथ्यात्वखण्डन नाटक में कवि ने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है : आदि चाटसू नगर के, वासी तिनि को जानि । हाल सवाई जै नगर, मांहि वसे हैं पानि । तहां लसकरी देहरे, राजत श्री प्रभु नेम । जिनको दरसण करत ही, उपजत है अति प्रेम ॥ कवि ने अपने बुद्धिविलास में महापण्डित टोडरमलजी की मृत्यु के संबंध में जो प्रकाश डाला है वह अत्यधिक महत्वपूर्ण है। (36) मन्ना साह:-- मन्ना साह 17वीं शताब्दी के विद्वान् थे। राजस्थान के ये किस प्रदेश को सुशोभित करते थे इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। अभी तक इनकी दो कृतियां मान बावनी एवं लघु बावनी उपलब्ध हई हैं। दोनों ही अपने ढंग की अच्छी रचनायें हैं। कवि का दूसरा नाम मनोहर भी मिलता है। (37) डालराम: ये 19वीं शताब्दी के कवि थे। इनकी गुरुपदेश श्रावकाचार, चतुर्दशी कथा तथा सम्यकत्व प्रकाश प्रसिद्ध रचनायें हैं। इन रचनाओं के अतिरिक्त इन्होंने पूजा साहित्य भी खूब लिखा है। जो राजस्थान के विभिन्न भंडारों में संग्रहीत है।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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