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गौतभीय काव्य का उददेश्य कविता कव्याज से जैन सिदान्त का निरूपण करना है। भगवान् महावीर के गणधर तथा प्रमुख शिष्य गौतम इन्द्रभूति और उनके अनुज के संशयों के निवारणार्थ कवि ने महाश्रमण के उपदेश के माध्यम से जैन दर्शन का प्रतिपादन किया है.जो पारिभाषिक शब्दावली में होने के कारण शुष्क तथा नीरस बन गया है। कवि ने प्रथम सर्ग में ऋत वर्णन के द्वारा काव्य में रोचकता लाने प्रयास किया है, किन्तु काव्य-कथा का संकेत किए बिना प्रथम सर्ग में ही ऋतुवर्णन में जट जाना अवांछनीय है और कथानक के विनियोग में कवि की कौशल-हीनता का सूचक भी ।