________________
जैन साहित्य में भूगोल
[८९ नम्बूद्वीप-प्रज्ञप्तिका
। संस्कृत और अपभ्रंश के पुराणों में जैसे इसके रचयिता पुण्यसागर महोपाध्याय हैं, हरिवंश पुराण, महापुराण, त्रिषष्टिशलाका पुरुष स ग्रन्थ की रचना ई० १५८८ जैसलमेर में चरित्र, चउपण्णमहापुरिस यदिगुणालंकार में की थी।
भी त्रैलोक्य का वर्णन पाया जाता है । म्बूिद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका क्षेमेन्द्रकीर्ति के शिष्य सुरेन्द्रकीर्ति ने सन्
विशेषकर जिनसेनकृत संस्कृत हरिवंश ७७६ में संस्कृत में लिखी थी।
पुराण (८वीं शताब्दी) इसके लिये प्राचीनता ये कुछ प्रारम्भिक स्फुट ग्रन्थ हैं, जिनमें और-विषय विस्तार की दृष्टि से उल्लेखनीय है । गोल-सम्बन्धी मान्यताओं का उल्लेख विस्तार
हरिवंश-पुराण के ४थे से सातवें सर्ग तक किया गया है।
इसके अतिरिक्त ज्योतिष के अन्यों में भी क्रमशः अधोलोक, तिर्यग्लोक, और उर्ध्वलोक गोल-विषय से सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध और काल का विशद् वर्णन किया गया है, जो ती है।
प्रायः तिलोय पण्णत्ति से साम्य रखता है। PECTERISRAERASANSAR
तत्त्वज्ञान की गंभीरता
@RECORRECRACHA
इन्द्रिय-मन एवं बुद्धि से समझे जाने वाले पदार्थों के पेले ॐ पार आत्म तत्त्व की संवेदना पूर्वक वस्तु-स्वरूप का निर्णय ४ तत्त्वज्ञान की आधारशिला है।
उसमें इन्द्रिय, बुद्धि मन का सहयोग है, परंतु ये तीनों ५ 2 सीमित होने से तत्त्वज्ञान का प्रतिपाद्य अतीन्द्रिय स्वरूप का ६ निर्णय करने में समर्थ नही ।
अतः विनीतभाव से आत्म-समर्पण पूर्वक गुरु-चरणों में से बैठकर बडी निष्ठा-गंभीरता के साथ तत्त्वज्ञान के हार्द को % पाने की चेष्टा करना विवेकी जनों का पवित्र कर्त्तव्य है।
SASARAS
MORENVIRORAKAM
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org