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तत्त्वज्ञान स्मारिका होते हैं। घट में जिस समय अस्तित्व रहता है | घटरूप गुणी के देश की अपेक्षा से देखा जाय उसी समय कृष्णत्व, स्थूलत्व, कठिनत्व, आदि । तो अस्तित्व और अन्य गुणों में कोई भेद नहीं धर्म भी रहते हैं। इसलिए काल की अपेक्षा से है, इसी को गुणिदेश कहते हैं।२४ अन्य धर्म अस्तित्व से अभिन्न है।
(७) संसर्ग---जैसे अस्तित्व गुण का घट से (२) आत्म-रूप-जैसे अस्तित्व घट का संसर्ग है, वैसे ही अन्य गुणों का भी घट से स्वभाव है, वैसे ही कृष्णत्व, कठिनत्व आदि भी | संसर्ग है। इसलिए संसर्ग की दृष्टि से देखने पर घट के स्वभाव हैं । अस्तित्व के समान अन्य | अस्तित्व और अन्य गुणों में कोई भेद दृष्टिगोगुण भी घटात्मक ही है। इसलिए आत्मरूप की | चर नहीं होता । इसलिए संसर्ग की अपेक्षा से दृष्टि से अस्तित्व और अन्य गुणों में अभेद हैं। सभी धर्मों में अभेद है।
(३) अर्थ-जिस घट में अस्तित्व है,उसी घट (८) शब्द-जैसे अस्तित्व का प्रतिपादन में कृष्णत्व, कठिनत्व आदि धर्म भी हैं। सभी धर्मों "है" शब्द द्वारा होता है, वैसे अन्य-गुणों का का स्थान एक ही है । इसलिए अर्थ की दृष्टि से प्रतिपादन भी "है" शब्द से होता है । घट अस्तित्व और अन्य गुणों में कोई भेद नहीं है। में अस्तित्व है, घट में कृष्णत्व है, घट में कठिन
(४) सम्बन्ध-जैसे अस्तित्व का घट से त्व है । इन सब वाक्यों में " है" शब्द घट के कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध है, वैसे ही अन्य धर्म | विभिन्न धर्मों को प्रकट करता है । जिस “है" भी घट से संबंधित है। सम्बन्ध की दृष्टि से शब्द से कृष्णत्व का प्रतिपादन होता है उस "है" अस्तित्व और अन्य गुण अभिन्न है। शब्द से कठिनत्व आदि धर्मों का भी प्रतिपादन
(५) उपकार-अस्तित्व गुण घट का जो होता है । इसलिए शब्द की दृष्टि से भी अस्तिउपकार करता है, वही उपकार कृष्णत्व, कठिनत्व
त्व और अन्य धर्मों में अभेद है। आदि गुण भी करते हैं। एतदर्थ यदि उपकार काल आदि के द्वारा यह अभेद-व्यवस्था की दृष्टि से देखा जाय तो अस्तित्व और अन्य पर्यायस्वरूप अर्थ को गौण और गुणपिण्डरूप गुणों में अभेद है।
द्रव्य पदार्थ को प्रधान करने पर सिद्ध हो जाती (६) गुणिदेश-जिस देश में अस्तित्व रहता है। अभेद प्रमाण का मूल प्राण है। बिना अभेद है, उसो देश में घट के अन्य गुण भी रहते हैं। के प्रमाण का स्वरूप सिद्ध नहीं हो सकता।
२४ अर्थ पद से अखंड वस्तु पूर्ण रूप से ग्रहण की जाती है, और गुणि-देश से अखण्ड वस्तु के
बुद्धि-परिकल्पित देशांश ग्रहण किये जाते हैं। २५ पूर्वोक्त सम्बन्ध और इस संसर्ग में यह अन्तर है--तादात्म्य सम्बन्ध धर्मों की परस्पर योजना
करनेवाला है और संसर्ग एक वस्तु में अशेष धर्मों को बतानेवाला है।
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