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________________ पेढी विविध प्रमाणयुक्त बन्दर मोडल रचना एवं आकृति-चित्र मकराणा के मारबल आरस, गा पोरबन्दर के लालपाषाण पर भव्य कलात्मक रूप से प्रस्तुत करने का कार्य अभी धमधोकार चालु है अगले पाँच वर्ष में साकार होने वाली इस योजना से नई पीढ़ी की धर्मश्रद्धा रहे पाये सुदृढ़ बन पायेंगे । इस योजना के आद्य प्राणरुप चरम-तीर्थकर प्रभु महावीर परमात्मा है, उन्हीं. आगमा' क आधार पर यह योजना मूर्त बन रही है ।। __ इसीलिए ONE OF INDIA रुप भव्य जिनालय श्री महावीर परमात्मा २८ फीट का परिकर एव २१ फीट के मंगलतोरण सुशोभित आदमकद प्रतिमा वाला श्री महावीर परमात्मा का पूर्वाभिमुख भव्य निनालय श्री जंबूद्वीप योजना के पास ही अद्भुत भव्य १०॥ फीट उँची पीठिका २० फीट का विशाल भूमिगृह और १११ फीट उँचा शिखर आदि विशेषतायुक्त ५. लाख के खर्च से तैयार इस जिनालय के २०३७ के फालान कृष्ण २ के शिलास्थापन के अवसर पर इन योजनाओं का महत्त्व समजानेवाले अनेक लेखो' से समृद्ध श्री तत्त्वज्ञान-स्मारिका प्रकाशित करने का निर्णय सं. २०३६ के श्रावण मास में पाटण ( सागर के उपाश्रय) में चातुर्मास स्थित पू. उपा. श्री धर्मसागरजी म. के शिष्य पू, पं. श्री अभयसागरजी म. की निश्रा में हुआ था । तदनुसार पू. आचार्य आदि पदस्थ एवं विद्वान मुनिराज जैन तथा जेनेतर विद्वानों को आमंत्रण पत्र भेज कर विविध लेखो को पाने की चेष्टा की । ___ आश्चर्य की बात है कि-देवगुरु के प्रताप से आषाढ़ी वृष्टि की ज्यो विविध लेखो की बौछार हमारे पर हुई, जिस से खूब ही समृद्ध रुप में "श्री तत्त्वज्ञान-स्मारिका'' ८०० पेज की समृद्ध-ग्रन्थके रुप में तैयार होकर श्री-संघ की सेवा में प्रस्तुत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। किन्तु रुचिभेद के कारण संब.को सभी लेख अनुकूल न आवें, अतः उसी स्मारिका-ग्रन्थ को खंड एवं विषय-विभाग के अनुरुप छोटी छोटी पुस्तिका के रुप में प्रकाशित करने का निर्णय कुछ सहृदय धर्मप्रेमी सज्जनों की सूचना के अनुरूप किया है । तद्नुसार यह प्रकाशन विशेष उपयोगी होगा ऐसी हमारी धारणा है । इस प्रकाशन स्मारिका में निर्दिष्ट अनेक पू. श्रमण भगवन्त है ओर धर्मप्रेमी महानुभावो का पुण्यसहयोग प्राप्त हुआ है । उन सब का यहाँ पुनः नामनिर्देश करना ठीक नहीं समझ कर मात्र पहले के क्रन्थ में गलती से छूटा हुआ पू. आ. श्री दर्शनसागर सूरीश्वरजी के शिष्य पू. गणी श्री महायशसागरजी म. के प्रति हम खूब श्रद्धांजलि के भाव से नत मस्तक हैं कि जिन्हों ने खूब ही श्रम उठाकर मुद्रण सम्बन्धी अनेक विशिष्ट जवाबदारीयाँ प्रारंभ में उठाकर हमारे इस मुद्रण कार्य को वेगशीली बनाया था । ___ आखिर में नम्र निवेदन है कि तटस्थ-दृष्टि से लेखों की संकलना के मूल आशय को दृष्टिगत रखकर सुज्ञ विवेकी वाचक इन लेखों का सत्यान्वेषी दृष्टि से अवगाहन करें। मुद्रणदोष दृष्टिदोष एवं छद्मस्थतावश इस प्रकाशन में कोई त्रुटी रही हो तो परिमार्जन कर लें, और हम उस बदल हार्दिक क्षमा माँगते है । वीर नि. सं. २५०८ निवेदकवि. सं. २०३८ श्री वर्धमान जैन पेढी भषाड सुद १ मंगळ जैन आगम मन्दिर के पास, भाथाखाता, तलेटी के पीछे, २२-1-८२ पालीताणा-३६४ २७० ता. क. :-लेखको के विचारों के साथ संपादक या प्रकाशक सम्पूर्ण सहमत होने की कोई धारणा न करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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