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________________ तत्त्व ] नवतत्त्व संग्रह ६७ अथ प्रकारांतरसुं श्रेणि करनेकी आम्नाय - जघन्य प्रतर असंख्यातकूं दुगणा करे, उस पर पल्योपमकी वर्गशलाकाकूं भाग दीजे. जो हाथ आवे उसकूं घनांगुलकी वर्गशarat भेल दीजै सो लोकाकाशकी श्रेणिकी वर्गशलाका हूई. इसकी असत् कल्पनाका (५८) यंत्रसे स्वरूप जानना - दूणा जघन्य प्रतर असंख्य छठ्ठा वर्ग ७९२२८१६५१४९६४३३७५९३५४३९५०३३६ २ २ १ ५ ६ (५९) श्री अनुयोगद्वार (सू० १४६ ) से संख्य असंख्य अनंत स्वरूपं संख्यात जघन्य उत्कृष्ट १ अ सं ख्या ལ 』 भ. श्र नं पल्की वर्ग- भाग देतें घनांगुल भेला कीये हाथ लगे वर्गशलाका शलाका 0 परित्त युक्त असंख्य परित्त Jain Education International 35 "" 39 35 35 33 मध्यम 99 33 59 For Private & Personal Use Only 35 युक्त त अनंत 33 15 एकका वर्ग भी एक तथा घन भी एक. गुणाकार एके से जिस राशि कीजीये सो जौं की त्यों रहै तथा एक भाग जिस राशिकूं दीजीये सो वी जौं की त्यों रहे. तिस कारणसे एका गिणतीमे नही. दूयेसे गिणती. सो दूया 'जघन्य संख्याता' कहीये. इसथी आगे ३|४|५ यावत् उत्कृष्ट संख्यातेमेसुं एक ऊणा होइ तहा ताइ सर्व 'मध्यम संख्याता' जानना, अब उत्कृष्ट संख्याता लिखी ये है 'विस्तरात् 99 39 33 33 33 सरसो १; यवमे ८, अंगुलमे ६४, हाथमे १५३६, दंडमे ६१४४, कोशमे १२२८८०००, सूची - योजनमे ४९१५२०००, प्रतर-योजनमे २४१५९१९१०४००००००, घन-योज - नमे ११८७४७२५५७९९८०८०००००००००० 35 विष्कंभ एक लाख योजन, गभीरपणा १०००, परिधि ३१६२२७ योजन झझेरी वेदका ८ योजन. शिखा २८७४८ योजनकी. ०००० O १ अनवस्थित पाला. २ शलाका पाला ३ प्रतिशलाका पाला. ४ महाशलाका पाला. १ विस्तारथी । www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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