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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१ जीवअर्हत, चक्री, वासुदेव, बलदेव, संमिन्नश्रोत, चारण, पूर्वधर, गणधर, पुलाक, आहारक (ए) दश लब्धियां भव्यस्त्रीने नही होती है. शेष १८ हुवै तथा ए अने केवली, ऋजुमति, विपुलमति एवं तेरह लब्धियां अभव्य पुरुषने न हुवै, शेष पंदर हुवै. तथा अभव्य स्त्रीयांने पिण १३ ए अने मधुक्षीराव लब्धि एवं चौद नही हुवै, शेष १४ हुवै. ए पंदरे द्वारे कही अवधिज्ञान वखाण्या.
मनःपर्यवज्ञानको दो भेद-अजुमति १ विपुलमति २. केवलज्ञानका एक भेद है. एह पांच ज्ञानका स्वरूप लेशमात्र लिख्या, विशेष नंदीमे.
(५७) अथ 'उपमा प्रमाण लिख्यते-असंख्याताका मापे आठ. पल्योपमा
| कूवा योजन १ लांबा चौडा तिसकी परिधि ३ योजन साधिक. इह योजन प्रमाणांगुलसे है. तिसकू वादर पृथ्वीके शरीर तुल्य रोमखंडसे भरिये ठांस कर जिसे (अग्निसे) जले नही, जलसे वहे नही, चक्रीसैन्याके उपर चलनेसे दबे नहीं; तिसमेसुं सौ सौ वर्ष गये एकेक खंड काढीये. जब 'रीता होवे सर्व कूवा तद एक पल्योपम कहीये. दस कोडाकोडी कूये खाली होइ तद एक सागरोपम शेयं.
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अंगुल
घन
सूची
| पल्योपमके छेद जितने होइ उतने ठिकाणे पल्योपमके समय लिखके
आपसमे गुणाकार कीजे. जो छेहदे आवे सो सूची अंगुलके प्रदेशांकी अंगुल
गिणती. तिसके छेद ६५५३६।१६ छेद. प्रतर
पल्य समय १६ छेद ४ १६/१६/१६/१६/ सूची अंगुल ६५५३६ प्रदेश | सूची अंगुलका वर्ग सो प्रतर अंगुल ४२९४९६७२९६; छेद ३२. .
प्रतर अंगुल ४२९४९६७२९६ कू सूची अंगुल ६५५३६ थी गुण्या घन अंगुल अंगुल होय. २८१४७४९७६७१०६५६, तिसके छेद ४८.
पल्यके छेद जितने होइ तिनका असंख्यमा भाग लीजे. तितने
ठिकाने पर घन अंगुलके प्रदेश रखकर आपसमे गुणाकार कीजे. जो | लोकाकाश-छेहदे आवे सो लोकाकाशके श्रेणी एकके प्रदेश होइ. ७९२२८१६२५१. श्रेणि ४२६४३३७५९३५४३९५०३३६, छेद ९६.
पल्य छेद असंख्य भाग घन अंगुल छेद छेद लोकाकाश-श्रेणि
सम१६/४] २ २८१४७९७६७१०६५६/४८/४८ छेद ९६ लोक
लोकश्रेणिका वर्ग कीजे सो लोकप्रतर. तिसके छेद १९२. प्रतर लोक- | १९२ छेद प्रतरके है. तिनकू श्रेणि छेद ९६ सुं गुणाकार कर्या 'लोक
घनका घनं होय. तिसके छेद २८८ अंक. सर्व असत् कल्पना जानने. १ साली।
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