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नवतत्त्वसंग्रह (४९)
जघन्य अवधि
सर्व
उत्कृष्ट अवधि
बाह्य
मध्यम
| अभ्यंतर अवधि अस्ति अस्ति
देश अवधि
अवधि
देव नरक
अस्ति
तिर्यंच | अस्ति
अस्ति
मनुष्य
अस्ति
अस्ति
अस्ति (५०)
अनुगामी
अननुगामी
वर्धमान
हीयमान
प्रतिपाति
अप्रति- अव- | अनवपाति स्थित स्थित अस्ति
देव नरक
अस्ति
मनुष्य
,
अस्ति
| अस्ति । अस्ति । अस्ति
" | "
अस्ति
तिर्यच
ए यंत्र दोनो प्रसंगात. तथा उत्कृष्टा अवधिज्ञान दो प्रकारे है-एक प्रतिपाति, दूजा अप्रतिपाति. जो उत्कृष्टा चौद रज्वात्मक लोक लगे व्यापे पिण अगाडी अलोकमे एक प्रदेश तक (भी) व्यापणेकी शक्ति नही तां लग अवधिज्ञान 'प्रतिपाति' कहीये; अने जे अवधि अलोकमे एके प्रदेशे व्यापे ते 'अप्रतिपाति.' इति क्षेत्रप्रमाण द्वार द्वितीय.
हियै तीजा संस्थान द्वार-जघन्य अवधिज्ञानका संस्थान पाणीके बिंदुवत् गोल है. अने उत्कृष्ट अवधिज्ञान वर्तुल आकारे ज हुइ, पिण कुछक लांबे आकारे हुइ. कमात् ? शरीरके चारों ओर अग्निके जीवांकी सूची फेरणे करी उत्कृष्ट अवधिका क्षेत्र कह्या है. अने शरीरका कोठा तो वर्तुल नही किन्तु कुछक लांबा है, इस वास्ते उत्कृष्ट अवधिज्ञानका संस्थान वर्तुल अने कुछक लांबा है. मध्यम अवधिज्ञानका संस्थान विचित्र प्रकारना है. ते यंत्रसे जानना. किंचित् संस्थान ज्ञानका.
(५१) (नारक आदिका अवधिका संस्थान) नारकीनो
भवनपति मनुष्य व्यंतर जोतिषी १२ देवलोक अवयक ५ अनुत्तर त्रापाने आकारे धान्य नाना पडहा झालर ते मृदंगने फलनी बालिकानो जिस करके | भरणेका प्रकारना बीचमे तो डोरूवजंतर आकारे चंगेरी- चोल जे बालनदीना पाणी ठेका तेहने संस्थान मोटा अने तेहने । एक पासे वत कने माथे उपर तरीये ते 'त्रापु'] संस्थाने असंख्य दोनो पासे संस्थाने चौडा, दूजे पिहरणनी परे कहिये तद्वत् भेदे सम तेहने
पासे
शरीरे पहेरे संस्थाने
सांकडा
तद्वत्
अवधि
तियच
संस्थाने ।
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