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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह , ____ अथ दजा क्षेत्रपरिमाणद्वार कहे है-तीन समयका उपनो आहारक सूक्ष्म पनक फलिननो जीव तेहनो शरीर जितना बड़ा होवे म्है (है ?) तितना अवधिज्ञानी जघन्य क्षेत्र देखे. हिवै सूक्ष्म पनक जीव कह्या ते कैसा ते कत कहे है. सहस्र योजन प्रमाण शरीर जे मत्स्य हुइ ते मत्स्य मरीने पहिले समय आपणा शरीर नऊ कडाह संहरीने सहस्र योजन प्रमाण प्रतर कहीये. मांडा (मादा) रूप थइ अने बीजे समये ते शरीर नउ प्रतर संहरीने सहस्र योजन प्रमाण सूचीने आकारे हुये अने तीजे समये ते सूचीरूप शरीर संहरीने सूक्ष्म रूप थइने ते मत्स्यनो जीव आपणा शरीर बाहिर जे पनग हूये तिस माहे उपजे ते 'सूक्ष्म पनक' कहीए. जब तीन समयका उपना आहार करे तेहनो शरीर जितना बडा होवे तितना क्षेत्र अवधिज्ञानी जघन्य जाणे. इति जघन्य अवधिक्षेत्रम्. अथ अवधिका उत्कृष्ट क्षेत्र कहीये है-श्रीअजितनाथने वारे पंदरे कर्मभूमे उत्कृष्टा घणा मनुष्य हुइ अने अग्निनो आरंभ मनुष्य ज करे तिस वास्ते बादर अग्निना जीव पिण घणा हुइ ते बादर अने सूक्ष्म अग्निका जीवांकी श्रेणि माडीइ ते श्रेणि इतनी बडी नीपजे लोकमे व्यापी अलोकमे लोक सरीषा. असंख्याता खंड व्यापे ते श्रेणि अवधिज्ञानीने शरीरे लगाइने चारो ओर फेरीये तिस श्रेणिने चारो ओर असंख्य रज्जु परमाणु जितना क्षेत्र स्पा है तितना क्षेत्र उत्कृष्ट परम अवधिज्ञानी देखे. अलोकमे देखने योग्य वस्तु तो नही, पिण शक्ति इतनी है जो कर वस्तु होती तो देखता. इति उत्कृष्ट अवधिक्षेत्रम्. अथ अवधिज्ञान आश्री क्षेत्रनी वृद्धिये कितना काल वधा अने कालनी वृद्धिये कितना क्षेत्र वधे ते (४३) यंत्रात्क्षेत्रथी जाणे | ते कालथी कितना जाणे? १ अंगुलके असंख्यातमे भाग १ ते आवलिके असंख्यमे भाग , संख्यातमे । , , संख्यातमे भाग एक अंगुल प्रमाण क्षेत्र एक आवलिका ऊणी पृथक अंगुल क्षेत्र देखे , पूरी जाणे एक हस्त " " अंतर्मुहूर्तनी वात जाणे , कोश , , एक दिवस ऊणी किंचित् , योजन , , पृथक् दिवस ९ ताई २५ , " " एक पक्ष किंचित् न्यून ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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