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________________ तस्व] नवतत्त्वसंग्रह पोरसीमै पढीये ते 'कालिक'-उत्तराध्ययन आदि, नंदीसे जानना. उत्कालिक दशवैकालिक प्रमुख जानना. इन १४ भेदमे लौकिक लोकोत्तर भेद है सो समज लेना. एह चौदा भेद पुरा हूये. अथ श्रुतज्ञान लेनेकी विधि लिख्यते सुस्सूसइ पडिपुच्छइ सुणेइ । गिण्हह । ईहए । अपोहइ | धारेइ करेह राखें, से करे ए शिष्य सिद्धांत संदेह पडे तथा जे गुरु पीछे जे संदे ते अर्थ वळी ते अर्थ पीछे ते पछे जे अनुलेनेहार होवे विनय करी संदेहना | हनो अर्थ पूर्वापर | विचारीने अर्थष्ठान जिस तो प्रथम एक नमन होकर अर्थ कहै ते गुरे कह्या ते विरोध टा पछी निश्चय हियेमे | विधिसे चित्तपणे गुरुना फरक फेरकर पूछे अछीतरे अर्थ रूडी ळीने हद- करे एहजार कहा है एदूजा गुण. सावधान परे ग्रहण यमे विचार वात इम ही तिस विधि: मुहथीनीकल्या होकर सुणे. कर रखे. ना करे. है. वचन सांभलने आठमा गुण वांछे ए प्रथम न हुइ. जानना. गुण है. (४१) सात प्रकारे शास्त्र सुननेकी विधियंत्रं मूअ१ । हुंकार २ वाढक्कार ३ पडिपुच्छ ४ विमंसा ५ पसंगपराय परीयण ठिय प्रथम जद शिष्य दूजी वार अर्थ तीजी वार गाढा चौथी वार पांचमी वार छठी वार ते सातमी वारे गुरु कन्हे अर्थ सुणीने मस्तक प्रगट बोले हे संदेह ऊठे ते अर्थ अर्थके पार गुरुनी परे सुणे तद विनय | नमाय कर भगवन् ! ए वात तो प्रश्न | हियेमे | जाय. शिष्य अर्थ करी शरीर संको- हुंकारा देवे. इम ज है, | पूछे. विचारे. कहै. ची मौन करे. अन्यथा नही. अथ शिष्य प्रते गुरु सिद्धांतना अर्थ किस रीतसे कहे ते वात कहीए है. गाथा "सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ निज्जुत्तिमीसओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो एस विही होइ अणुओगो॥" सुत्त पहिला गुरु सूत्रना अक्षरार्थ मात्र अछीतरे प्रकाशे; तिहां विशेष काइ न कहइ. किस वास्ते ? पहिला विशेष कहतां शिष्यनी बुद्धि मूढ हो जावे, कुछ भी समजे नही. पीछे दूजी वार अर्थ जाण्या पीछे नियुक्ति सहित सूत्र विशेष वखाणे. ते विशेष रूडी परे जाण्या पीछे वली तीजी वारे शिष्यने निरवशेष ते सूत्र माहिला विशेष अने सूत्रमे जो न कह्या गम्य शेष आदि सगला प्रकाशे. ए सिद्धांतना अनुयोग कहीए अर्थ कहेवानी विधि जाननी. इति श्रुतज्ञानस्वरूप संक्षेपथी संपूर्ण. १ सूत्रार्थः खलु प्रथमो द्वितीयो नियुक्तिमिश्रको भणितः । तृतीयश्च निरवशेष एष विधिर्भवत्यनुयोगः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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