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________________ निवेदन नवतत्वसंग्रह ए नाम ज कही आपे छे तेम आ ग्रंथमा जीवादि नव तत्त्वोनुं खरूप आलेखवामां आव्युं छे, परंतु विशेषता ए छे के श्रीभगवतीसूत्र प्रमुख विविध आगमोना पाठोनी अत्र संकलना करवामां आवी छे. अनेक मुद्दानी वस्तुओ यंत्ररूपे कोष्ठक द्वारा रजु कराइ छे जेथी आ ग्रंथनी महत्तामा असाधारण वृद्धि थइ छे. आ ग्रंथना कर्ताए बार विविधवर्णी 'चित्रो वडे एने अलंकृत कों छे. आ ग्रंथनी मुख्य भाषा हिंदी गणाय जोके केटलीक वार संस्कृत, प्राकृत अने गुजराती प्रयोगो एमां दृष्टिगोचर थाय छे; कोइक वेळा तो पंजाबी शब्दो पण नजरे पडे छे. आवी परिस्थितिमा तेमज अंतमां अतिशीघ्रताए आ ग्रंथ मुद्रित कराववो पड्यो तेथी मारे हाथे जो यथेष्ट संशोधनादि द्वारा आने पूर्ण न्याय न अपायो होय तो सहृदय साक्षरो क्षमा करशे एटली मारी तेमने विनति छे. मूळ कृतिमांना आंतरिक स्वरूपमा भाग्ये ज स्वल्प परिवर्तन करवू अने ते पण खास आवश्यकता होय तो ज करवु एवी श्रीविजयवल्लभसूरिनी सूचना तरफ पण तेमनुं सविनय ध्यान खेंचीश. आ ग्रंथमा कया कया विषयो आलेखाया छे तेनुं निरीक्षण करवा मारी पाठकमहोदयने विशिष्ट विनति छे. मने पोताने तो एम स्फुरे छे के आ ग्रंथमा अतिसूक्ष्म वस्तुओनी भाषा द्वारा प्रथम जगुंथणी थइ छे एटले जेमने आगमो जोवाजाणवानो शुभ प्रसंग मळयो न होय तेमने आमांथी घणुं न जाणवानुं मळशे. विशेषमा उपदेशबावनी प्रसिद्ध करवानुं वचन अपायुं हतुं नहि, छतां श्री विजयवल्लभसूरिनी सूचनाने मान आपी ते सुरम्य तेमज सुश्लिष्ट पद्यमय लघु प्रन्थने पण अत्र स्थान आपवामां आप्युं छे. प्रन्थप्रणेतानी तेमज तेमना प्रथम शिष्यरन स्व. मुनिवर्य श्रीलक्ष्मीविजयनी प्रतिकृतिओ श्रीयुत लालचंद खुशालचंद (बालापुर ) तरफथी, ग्रन्थकारना हस्ताक्षरनी तेमज प्रवर्तक मुनिराज श्रीकांतिविजयनी श्रीयुत दोसी कालीदास सांकलचंद (पालनपुर) तरफथी, शांतमूर्ति मुनिराज श्रीहंसविजयनी श्रीयुत कांतिलाल मोहनलाल (पालनपुर ) तरफथी, स्व. मुनिवर्य श्रीहर्षविजयनी लाला मानिकचंद छोटालाल दुग्गड (गुजरांवाला) तरफथी अने श्रीविजयवल्लभसूरिनी श्रीयुत राह्याभाइ सूरजमल तरफथी पूरी पाडवामां आवी छे ते बदल तेमने तेमज जेमणे ए कार्य माटे पोताना ब्लॉकोनो उपयोग करवा दीधो छे तेमने पण हार्दिक धन्यवाद घटे छे. ___ अंतमां आ निवेदनने वधु न लंबावतां आ ग्रंथना प्रणेताना जीवननी जे आछी रूपरेखा हवे पछी आलेखवामां आवे छे तेमाथी उद्भवता बोधदायक पाठो जीवनमा उतारवार्नु सामर्थ्य प्रकटे एटली अभिलाषा पूर्वक विरमवामां आवे छे. भगतवादी, भूलेश्वर, मुंबई. चारित्र्याकांक्षी वीरसंवत् २४५७ हीरालाल रसिकदास कापडिया. भाद्रपद कृष्ण पंचमी १जुओ हस्तलिखित प्रतिना खास करीने पत्रांक-१६ ब, ३२ ब, ३३ २, ३४ ब, ३७ अ, ५. अ, ५० ब, ५२ ब, ५३ अ, ५३ ब तथा ५४ अ. आ चित्रोनुं मुद्रणकार्य चित्रशाळा मुद्रणालय (पुना)मां थयु छे. वळी लिथो तरीके एक फॉर्म पण सांज तैयार करावायो छ... २मारा पिता एमने पोताना गुरुदेव तरीके सन्मानता हता. .. ३ ख. श्रीविजयकमलसूरि तेमज उपाध्याय श्रीवीरविजयनी पण प्रतिकृतिओने अत्र सानंद स्थान अपात, किन्तु तेने लगता ब्लॉको मेळववा पूर्ण प्रयास करवा छतां ते न मलवाथी ए इच्छा सफळ थइ शकी नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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