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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह मरणां ७ समुद्धात . वेदनी | कषाय वैक्रिय तैजस आहारक केवल असमवहता तिक विना काल . अंतर्मुहूर्त अंत० अंत० अंत० अंत० ८ समय अंत० जघन्य अनंती अनंती अनंती अनंती अनंती अतीत काले उत्कृष्ट करेवीन नही१ जघन्य ही बीजो आगे करे करेगा, ते अनंती उत्कन अनंत अनंत अनंत अनंत को अल्पबहुत्व ० २ संख्ये ८ असं० ५अनंत ७ विशेष ६ असं० ४ असं० ३ असं० १ स्तोक गुण य गुणा गुणा क्षेत्र विष्कंभ बाहुल्य शरीर शरीर शरीर शरीर प्रमाण प्रमाण प्रमाण | प्रमाण शरीर शरीर सर्व प्रमाण | प्रमाण लोक आयाम लांबपणे विग्रह समय संख्या ३ ३ ३ ३ ३ . . क्रिया (१७) केवल(लि)समुद्धातयंत्रं प्रथम आउजी(आवर्जी)करण करे-आत्माकू मोक्षके सन्मुख करे; पीछे समुद्धात करे. जिस समयमे आत्मप्रदेश सर्व लोकमे व्याप्त करे तिस समये अपने अष्ट रुचक प्रदेश लोकरुचक पर करे इति स्थानांगवृत्तौ। समय १२ ८ समय | समय समय समय | समय | समय " | औदारिक आदारिक कार्मण कार्मण कार्मण मिश्र मिश्र औदारिक | दंड करे कपाट करे मंथान अंतर अंतर | मंथान | कपाट | दंड संहरे करे । पूरे | संहरे | संहरे । संहरे । शरीरस्थ ७ समय समय करण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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