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________________ श्रीविजयानंदसूरिकृत [ १ जीव ९ ग्रैवे. 644 5 मरणांत भवन० स्था विकलेंद्री व्यंतर समुद्धात ३-८ यक नारकी जोतिषी तेजस देवलोक देवलोक र तिर्यंच सौधर्म अवगाहना ईशान अनुत्तर ५ पंचेन्द्री १००० | अंगुलके अंगुल असं अंगुल असंयोजन | असंख्या- ख्यातमे ख्यातमे भाग भाग स्त्रीसे भोग अंगुलके साधिक तम माग स्वीभोग करी वयावर असल्याएवम एवम ग विद्याधर असंख्यापाताल- स्व आभरण बालभाग करी । कलशकी | करी मरी तिहां योनिमे श्रेणि | तमे आदि तिहां उपजे पहिला वीर्य भाग भीति आश्री अपेक्षा(से) अन्य वीर्यमे है तिहां उपजे जीजी नर पातालसातमी कलशके अधोउत्कृष्ट कका चरम नरक उपरले २ ग्राममे ग्राममे भागे प्रमाण अधो अध बिलासपमण समुद्रकी स्वयंभूरमण मनुष्य क्षेत्र समुद्र वेदादिकांत समुद्र तिरछा स्वयंभूरमण स्वयंभूरमण मनुष्य क्षेत्र । ईषत् अच्युत ऊर्ध्व ऊंचा अपना पंडग वन वापीमे प्रारभार | अच्युत विमान पली दवलाक वारसा देव० वारमा देव० विमान रज | चरमंते तिरियं जाव सयंभुरमणसमुदस्स वाहिरिल्ले वेइयंते, उडे जाव इसीपब्भारा पुढवी, एवं जाव थणियकुमारतेयगसरीरस्त । वाणमंतरजोइसियसोहम्मीसाणगा य एवं चेव । सणंकुमारदेवस्स णंभंते ! जह० अंगु० असं०, उक्को० अधे जाव महापातालाणं दोच्चे तिभागे, तिरियं जाव सयंभुरमणे समुद्दे, उढे जाव अञ्चुओ कप्पो, एवं जाव सहस्सारदेवस्स अञ्चुओ कप्पो । आणयदेवस्स णं भंते ! जह० अंगु० असं०, उक्को जाव अधोलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उर्दु जाव अक्षुओ कप्पो, एवं जाव आरणदेवस्स अच्चुअदेवस्ल एवं चेव, णवरं उढे जाव सयाई विमाणाति । गेविजगदेवस्स णं भंते !० जह० विजाहरसेढीतो, उक्को० जाव अहोलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उर्ल्ड जाव सगातिं विमाणाति, अणुत्तरोववाइयस्त वि एवं चेव" । (प्रज्ञा० सू० २७५) (१६) श्रीपन्नवणा पद ३३मेथी समुद्धातयंत्रम् मरणा ७ समुद्धात . वेदनी कषाय वैक्रिय तैजस आहारक केवल असमवहता ३ नरक ४ गति स्वामी । ० ४ गतिना ४ गतिना ४गतिना ४ गतिना १ मनुष्य १ मनुष्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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