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तत्व ]
नारकी
रत्नप्रभा
शकर (रा) प्रभा
वालुक (का) प्रभा
पंकप्रभा
धूम्रप्रभा
तमप्रभा
तमतमप्रभा
भवनपति १०
एकेंद्री ५
विगद्री ३
सम्मूच्छिम पंचेंद्री "तिर्यच
गर्भज पंचेंद्री तिर्यच
सम्मूच्छिम मनुष्य
गर्भज मनुष्य
नवतत्त्वसंग्रह
(३) * अवस्थित (ति) यत्रम् - जीवानां सर्वाद्वा
उत्कृष्ट २४ मुहूर्त
जोतिषी
४८
सु (सौ) धर्म ईशान
१४ दिनरात्रि
१ मास
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19
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४
८
२
23
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२४
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१२
४८ मुहूर्त आवलिके असंख्यात
अंतर्मुहूर्त (?)
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२४ मुहूर्त
४८
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सनत्कुमार
महेंद्र
ब्रह्मलोक
लांतक
महाशुक्र
सहस्रार
आनत प्राणत
आरण अच्युत
(०) पहिली त्रिक मध्यम त्रिक
उपर त्रिक
विजयादि ४
सर्वार्थसिद्ध
सिद्ध
उत्कृष्ट ४८ मुहूर्त
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,, १८ दिन ४० मुहूर्त
२४ दिन २० मुहूर्त
४५ अहोरात्र
९० रात्रिदिन
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33
55
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39
31
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१६०
२०० रात्रि
संख्याते मास
संख्याते वर्ष
सौ,”
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33
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55
११
हजार "
लाख
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पल्योपमनो असंख्यातमो भाग
४८
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व्यंतर जघन्य सर्वत्र एक समय इति. सट्ठि रातिंदियसतं, सहस्सारे दो रार्तिदियसयाई, आणयपाणयाणं संखेजा मासा, आरणच्चुयाणं संखेजाई वासाई, एवं गेवेजदेवाणं विजय वेजयं तजयंत अपराजियाणं असंखिजाई वाससहस्लाई, सव्वट्टसिद्धे य पलिओ मस्स [अ] संखेजतिभागो, एवं भाणियव्वं, वहुति हायंति जह० एवं समयं, उक्को॰ आवलियाए असंखेजतिभागं, अवट्टियाणं जं भणियं । सिद्धा णं भंते! केवतियं कालं वर्द्धति ? | गोमा ! जह० एवं समयं, उक्को० अड्ड समयाः केवतियं कालं अवट्टिया ? गोयमा ! जह० एकं समयं, उक्को० छम्मासा ॥
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जीवाणं भंते! किं सोवचया, सावचया, सोवचयसावचया, निरुवचयनिरवचया ? । गोयमा ! जीवाणो सोवचया, नो सावच्या, जो सोवचयसावचया, निरुवचयनिरवचया । एगिंदिया ततियपए, सेसा जीवा चउहि वि पदेहि वि भाणियव्वा । सिद्धाणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! सिद्धा सोवचया, १ जीवोनी सर्व काळ अवस्थिति छे ।
पल्योपमानो संख्यातमो भाग
६ मास
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