SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीविजयानंदसूरिकृत [१ जीव(२) वृद्धि-हानि भगवती श०५, उ०८ __ वडंति होयंति जीव नरकादि वैमानिक २४ उत्कृष्ट आवलि असंख्य भाग उत्कृष्ट आवलि असंख्य भाग सिद्ध | उत्कृष्ट ८ समय . जघन्य सर्वत्र १ समय १ समय विरह सर्वत्र अद्धा सिद्धक विरह तुल्य. छप्पन्न दोसयंगुलसूईपएसेहि भाइओ पयरो। हीरइ जोइसिएहिं सट्टाणे त्थीउ संखगुणा ॥४८॥ अस्संखसेढिखपएसतुल्लया पढमदुइयकप्पेसु । सेढिअसंखंससमा उवरिं तु जहोत्तरं तह य ॥४९॥ सेढीएकेकपएसरइयसूईणमंगुलप्पमियं । घम्माए भवणसोहम्मयाण माणं इमं होइ॥५०॥ छप्पन्नदोसयंगुलभूओ भूओ विगिज्झ मूलतिगं। गुणिया जहुत्तरत्था रासीओ कमेण सूईओ ॥५१॥ अहवंगुलप्पएसा समूलगुणिया उनेरइयसूई। पढमदुइया पयाई समूलगुणियाई इयराणं ॥५२॥ अंगुलमूलासंखियभागप्पमिया उ होति सेढीओ। उत्तरविउव्वियाणं तिरियाण य सन्निपज्जाणं ॥५३॥ सामण्णा पज्जत्ता पणतिरि देवेहि संखगुणा । संखेज्जा मणुया तहि मिच्छाइगुणा वि सटाणे ॥५४॥ उकोसपए मणुया सेढी रूवाहिया अवहरंति । तईयमूलाहएहिं अंगुलमूलप्पएसेहिं ॥ ५५॥" * आ तेमज आ पछीनां चे यंत्रो परत्वे नीचे मुजबर्नु सूत्र छ: जीवा णं भंते ! किं वटुंति, हायंति, अवट्ठिया? । गोयमा! जीवा णो वडंति, नो हायंति, अवद्विया। नेरइया णं भंते ! किं वडंति, हायंति, अवट्रिया? । गोयमा! नेरइया वटुंति वि, हायंति वि, अवट्टिया वि; जहा नेरइया एवं जाण वेमाणिया। सिद्धाणं भंते ! पुच्छा, गोयमा! सिद्धा वटुंति, नो हायंति, अवट्रिया वि॥ जीवाणं भंते! केवतियं कालं अवट्रियावि ]? । सवद्धं । नेरइया णं भंते ! केवतियं कालं वखंति ? । गोयमा! जहन्नेणं एग समयं, उक्को आवलियाए असंखेजतिभागं, एवं हायंति, नेरइया णं भंते ! केवतियं कालं अवट्ठिया ? । गोयमा! जह० एगं समयं, उको० चउ. व्वीसं मुहुत्ता, एवं सत्तसु वि पुढवीसु वटुंति हायति भाणियव्वं, नवरं अवट्ठिएसु इमं नाणत्तं, तंजहा-रयणप्पभाए पुढवीए अडतालीसं मुहुत्ता, सक्कर० चोद्दस रातिंदियाणं, वालु० मासं, पंक० दो मासा, धूम० चत्तारि मासा, तमाए अट्र मासा, तमतमाए बारस मासा । असुरकुमारा वि० वर्द्धति हायति जहा नेरइया, अवट्ठिया जह० एकं समयं, उक्को अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता, एवं दसविहा वि; एगिदिया वहृति वि हायंति वि अवट्ठिया वि, एएहिं तिहि वि जह० एकं समय, उक्को आवलियाए असंखेजतिभागं, बेइंदिया वहूति हायंति तहेव, अवट्रिया जह० एकं समय, उक्को० दो अंतोमुहुत्ता, एवं जाव चउरिंदिया, अवसेसा सब्वे वर्ल्डति हायंति तहेव, अवट्ठियाणं णाणत्तं इमं, तं० संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं दो अंतोमुहुत्ता, गब्भवतियाणं चउव्वीसं मुहुत्ता, संमुच्छिममणुस्साणं अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता, गभवतियमणुस्साणं चउव्वीसं मुहुत्ता, वाणमंतरजोतिससोहम्मीसाणेसु अट्रचत्तालीसं मुहुत्ता, सणंकुमारे अठारस रातिदियाई चत्तालीस य मुहु०, माहिंदे चउवीसं राति० वीस य मु०, बंभलोए पंचचत्तालीसं राति०, लंतए नउति राति०, महासुक्के १ वधे छ। २ घटे छ। ३ काळ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy