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________________ महाशुक्र आनत लान्तक " २५ सहस्रार प्राणत १९२ श्रीविजयानंदसूरिकृत [७ निर्जरासौधर्म देवलोक अपरिगृहीत देवीना विमान ६ लाख, ते किणि किणि देव लोकि भोग आवे ते (१३२) यंत्रम् सनत्कुमार पल्योपम १० स्पर्शभोगी ब्रह्म रूप देखी भोगवे शब्द सांभळी भोगवे __, ४० मन करी विकार करी आरण मनई चिंतवी (१३३) ईशान देवलोके अपरिगृहीत देवीना विमान ४, ते किस किसके ? माहेन्द्र पल्योपम १५ स्पर्शभोगी रूप देखी शब्दभोगी मनि विकार करी अच्युत मन चिंतवी भोगवे (१३४) अथ ९ ग्रैवेयक, ५ अनुत्तरविमानयंत्रम् हेठत्रिक मध्यत्रिक | उपरत्रिक | ४ अनुत्तर सर्वार्थसिद्ध संस्थान । पूर्ण चंद्र पूर्ण चंद्र पूर्ण चंद्र अंस विमान-संख्या १०७ पृथ्वीपिंड २,२०० २,२०० २,२०० २,१०० २,१०० विमान-उच्चत्व १,००० १,००० १,००० १,१०० १,१०० संख्य विष्कंभ संख्य संख्य असंख्य संख्य असंख्य असंख्य असंख्य प्रतर ३ पदवी अहमिन्द्र । अहमिन्द्र । अहमिन्द्र। अहमिन्द्र (१) उडु प्रतर, (२) चंद्र प्र०, (३) रजत प्र०, (४) वालू प्र०, (५) वीर्य प्र०, (६) वारुण प्र०, (७) आनंद प्र०, (८) ब्रह्म प्र०, (९) कांचन प्र०, (१०) रुचिर प्र०, (११) चंद्र प्र०, (१२) अरुण प्र०, (१३) दिशि प्र०, (१४) वैडूर्य प्र०, (१५) रुचक प्र०, (१६) रुचक (?) प्र०, (१७) अंक प्र०, (१८) मेघ प्र०, (१९) स्फटिक प्र०, (२०) तपनीय प्र०, (२१) अर्घ प्र०, (२२) हरि प्र०, (२३) नलिन प्र०, (२४) सोहिता प्र०, (२५) वज्र प्र०, (२६) अंजन प्र०, (२७) (१), (२८) ब्रह्माष्प प्र०, (२९) हव प्र०, (३०) सौम्य प्र०, (३१) लांगल प्र. प्र०, (३२) बलभद्र प्र०, (३३) वक्र प्र०,(३४) गदा प्र०, (३५) स्वस्तिक प्र०, (३६) व्यर्वत (१) प्र०, (३७) आरंभ प्र०, (३८) गृद्धि प्र०, (३९) केतु प्र०, (४०) गरुड प्र०, (४१) ब्रमित १०० अहमिन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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