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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[७ निर्जराजलानल सूर ध्यान आतम अधिष्टथान जलानल ग्यान भान मानके रहतु है वसनकी मैल झरे लोह केरी कीटी जरे मही केरो पंक हरे उपमा लहतु है ? जैसे ध्यान धर करी मन वच काय लरी ताप सोस भेद परी ऐसे कर्म कहे है जैसे वैद लंघन विरेचन उपध कर ऐसे जिनवैद विभुरीत परठहे है तप ताप तप सोस तप ही उपध जोस ध्यान भयो तपको स रोग दूर थहे है ए ही उपमान ग्यान तपरूप भयो ध्यान मार किर पान भान केवलको लहे है १ जैसे चिर संचि एध अगन भसम करे तैसे ध्यान छाररूप करत कर्मको जैसे वात आमवृंद छिनमे उडाय डारे तैसे ध्यान ढाह डारे कर्मरूप हर्मको जब मन ध्यान करे मानसीन पीर करे तनको न दुप धरे धरे निज सर्मको मनमे जो मोष वसी जग केरी तो (?) रसी आतमसरूप लसी धार ध्यान मर्मको १
अथ पिछले सवैइयेका भावार्थमे लोकसरूप आदि विवरण लिख्यते
लोकस्य एकोणिस्थापना
लोकप्रतरस्थापना घनीकृतलोकस्थापना शेयम्
अथ घनीकृत लोकस्वरूप लिख्यते--अथ पुनः किस प्रकार करके लोक संवर्त्य समचतुरस्र करीये तिसका स्वरूप कहीये है. स्वरूप थकी इह लोक चौदा रज्जु ऊंचा है, अने नीचे देश ऊन सात रज्जु चौडा है, तिर्यग्लोकने मध्य भागे एक रज्जु चौडा है, ब्रह्मदेवलोकने मध्ये पांच रज्जु विस्तीर्ण है, ऊपर लोकांते एक रज्जु चौडा है, शेष स्थानको अनियत विस्तार है. रज्जुका प्रमाण-'स्वयंभूरमण' समुद्रकी पूर्वकी वेदिकासे पश्चिमकी वेदिका लगे; अथवा दक्षिणनी वेदिकाथी उत्तरकी वेदिका पर्यंत एक रज्जु जान लेना. ऐसे रह्या इह लोकना बुद्धि करी कल्पना करके संवर्त्य घन करीये है. तथाहि-एक रजु विस्तीर्ण त्रसनाडीके दक्षिण दिशावर्ती अधोलोकको खंड नीचे देश ऊन रज्जु तीन विस्तीर्ण अनुक्रमे हाय मान विस्तारथी उपर एक रजुका संख्यातमे भाग चौडा अने सात रन्जु झझेरा ऊंचा एहवा पूर्वोक्त खंड लइने त्रसनाडीके उत्तर पासे विपरीतपणे स्थापीये, नीचला भाग उपर अने उपरला भाग नीचे करी जोडना इत्यर्थः ऐसे कर्या अधोवर्ति लोकका अर्ध देश ऊन चार रज्जु विस्तीर्ण विस्तीर्ण झझेरा सात रज्जु ऊंचा अने चौडा नीचे तो किहा एक देश ऊन सात रज्जु मान अने अन्यत्र तो अनियत प्रमाणे जाडा अर्थात् बाह(हु)ल्यपणे है. अब उपरला लोकाध संवत्ती
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