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________________ १२० श्रीविजयानंद सूरिकृत [१ जीरसातमी नरकके. आकाशक तले अर्थात् नीचे दोय प्रतर आपसमे सदृश अने सात राज (रज्जु)के लंबे चौडे है. तिसके ऊपर एक प्रदेश हीन दोय प्रतर है. तिनके ऊपर एक प्रदेश हीन चार प्रतर सरीषे है. तिनके ऊपर एक प्रदेश हीन दोय प्रतर सरीष है, तिन के ऊपर एक प्रदेश हीन दो प्रतर है. ऐसे ही १ प्रदेश हीन फेर दोय प्रतर है. एक प्रदेश हनि फेर दोय प्रतर है. एवं सर्व १४ प्रतर चढेसे बारा प्रदेशकी हान होइ: इसी तरे चवदे प्रतर चढे फेर वारा प्रदेश घटे. असी सात रज्जु ताइ चवदे प्रतर चढे बारे घटालेने अने ऊर्ध्व लोकमे सात प्रदेश चढ चारको हान जाननी. चारकी आदिमे वृद्धि उपर हान जाणवी अने जे दूजी तरफ दो आदिकके अंक लिखे है सो प्रतरके प्रदेशांकी संख्याके कृतयुग्म भने द्वापरयुग्म ज्ञेयं. इति अलम्. लोकश्रेणि अलोकश्रेणि ऊंची T " ऊची | तिरछी । तिरछी !संख्य असंख्य.अनंता द्रव्यार्थ । असंख्य असंख्य अनंत अनंत सख्य.जसंख्य, अनंत प्रदेशार्थ युग्म ५ दत्यार्थ संख्य, असंख्य कृतयुग्म कृतयुग्म कृतयुग्म प्रदेशार्थे कृतयुग्म ४ ४ ।३।२। १४ ।३।२।१ चतुर्भगी श्रेणि अपेक्षा ४ २ सादि सांत अग अप । प्रण अप सादि सांत प्रण स३ श्रण स सा अप३ स अप स सप४ (८७) श्रीभगवती दशमे शते प्रथम उद्देशके दस दिग् स्वरूपयंत्रम् Re | इन्द्रा आग्नि यमा नैऋत्य वरुणा वायव्य सोमा ईशान तमा | विमला पूर्व दिग कूण दक्षिण कूण | पश्चिम कूण उत्तर कूण अधो ऊर्ध्व दिग - उद्भव रुचकसे उत्पात संस्थान मुक्ता जूया गास्तन गास्तन संस्थान | जूथा | सक्का इथा मुक्ता० ऋथा मुक्ताः सूया मुक्ता गोस्तन गोस्तन लोक देश दशम वर्ग १ छ । बा । बहु | ११ आयाम ३रज्जु | ॥रज्जु मरज्जु २॥ 2॥, , " लंबी ! योगी प्रदेश ऊन सात राज Bayr মহা असंख्य असंख्य असंख्य असंख्य मसंख्य असं अनस्या असंख्य विशेष असंख्य amatidhगुणी ५ ५ ५ or sivate personalsea ४ ३ R brary.ore Jain Educatimes
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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