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११८
अजीव द्रव्य
काल ४
पुद्गलास्तिकाय ५
सत्पदप्ररूपणा
द्रव्यपरिमाण
क्षेत्र
स्पर्शना
काल
अंतर
भाग
भाव
22
द्रव्यथी
अनंता
अल्पबहुत्व द्रव्यार्थे
प्रदेशार्थे
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श्री विजयानंदसूरिकृत
कालथी
अनंत
क्षेत्री
| मनुष्यलोक
प्रमाण
लोकप्रमाण
| वर्ण, गंध, रस, स्पर्श है
(८१) अनुयोगद्वार (सू०७४,८० - ८९ ) से पुद्गलयंत्रम्
अनानुपूर्वी २
अस्ति
अनंते
क्षेत्रवत् पांच बोल जानने; वरं स्पर्शना कहनी
33
एक द्रव्य आश्री अनंत काल; नाना आश्री सर्वाद्धा
शेष द्रव्यके घणे असंख्य भाग अधिक
""
आनुपूर्वी १
नियमात् अस्ति
अनंते
संख्य भाग १, असंख्य
भाग २ घणे, संख्ये घणे, असंख्यमे भाग लोकके असंख्ये सर्व लोक
सादि पारिणामिक भावे है
४ असंख्येय गुण
55
५ अनंत गुणे
त्रिप्रदेशी ४/५/६ ७ ८ ९ यावत् अनंत
भावधी
वर्ण आदि ५ नही
27
एक द्रव्य आश्री असंख्य
काल; नाना आश्री सर्वाद्धा एवम्
असंख्यमे भाग
शेष द्रव्य० असंख्य भाग हीन घणे
[ २ अजीव
गुणधी
वर्तन (ना) गुण
कालस्य
→ एवम्
२ विशेष अधिक
अप्रदेश स्तोक २
ग्रहणलक्षण
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अवक्तव्य ३
अस्ति
अनंते
असंख्यमे
एक० असंख्य; नाना एक अनंत काल; नाना सर्वाद्धा सर्वाद्धा
असंख्यमे भाग
→
स्वरूप
परमाणु
द्विदेशी
जिस स्कंधमे आदि, अंत पाइये, मध्य पाइये सो 'स्कंध आनुपूर्वी' कहीये १. जिस स्कंध तीन बोलमेसु कोइ बी न पाइये सो 'अनानुपूर्वी' कहीये. जिस स्कंधमे आदि, अंत पाइये पिण मध्य न पाइये सो 'अवक्तव्य' कहीये.
अथ अग्रे लोकस्वरूप व्यवहार नयके मतसे लिखिये है; निश्चयमे तो अनियत प्रमाण है.
→>>
१ स्तोक
विशेष अधिक ३
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