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श्रीविजयानंदसूरिकृत
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१५२ श्रेणि उपशम
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चवके दंडके
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१५५ पर्याप्ति ६ ६ ६ ६ ६ १५६ अनुव्रत १२ १५७ महाव्रत ५
महावत ५ ० ०० ०० सम्यक्त्व. सामायिक १, श्रुतसामा- . यिक २, देश
व्रतीसामा- . यिक ३ सर्वव्रतीसामायिक ४
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मोहना बंध
१५९२१ ।
२२ ने बंधे २१ ने बंधे १७ ने बंधे १७ ने बंधे १३ ने बंधे भंग २ |९ ने बंधे भंग २
९ ने बंधे |९ ने बंधे भंग २
भंग ४ भंग २
भं.१,३ ने १, ५ने १,४ ने बं
'भंग
बावीसवो बंधस्थाने पीछे लिख्या है । अथ भंगस्वरूप-हास्य रति वा अरति शोक २ ए दो भंग पुरुषवेद साथ; एवं २ स्त्रीवेद साथ; एवं २ भंग नपुंसकवेद संघाते; एवं २२ ने बंधे भंग ६. इक्कीसेके बंधे भंग ४-अरति शोक पुरुषवेद १, हास्य रति पुरुषवेदसे बंधे २; एवं पुरुषवेद काढीने स्त्रीवेदसुं दो भंग करणा; एवं ४. नपुंसकवेदका बंध सास्वादने नही. १७ ने बंधे भंग २-हास्य रति पुरुषवेद १, अरति शोक पुरुषवेद २; एवं २; स्त्रीका बंध नही. तेराके बंधमे एही दो भंग जानने. छठे गुणस्थानमे ९ के बंधमे एही दो भंग; एवं ९ के बंधमे, आगे पिण ए ही दो भंग अने नवमेमे ५ ने बंधे एक भंग १,४ ने बंधे १ भंग, ३ ने बंधे भंग १, २ ने बंधे भंग १, अने १ ने बंधे भंग १. यद्यपि सातमे आठमे गुणस्थानमे अरति १ शोकका बंध नहीं है तथापि भंगनी अपेक्षा सप्ततिसूत्रमे बंध कह्या है इति अलम्
| २४ ११. मोहके उदय- ७२ २३ २४ २५ २६ २७ २४...
० भंग ९९५ ७३ २४ २४ । ७३ ७४ ७४२४ |
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