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________________ ११४ श्रीविजयानंदसूरिकृत [१ जीव १५२ श्रेणि उपशम क्षपक 4444 || 944 cl । ४ ४ ४ ४] १५३ कल्प५ चवके दंडके जावे । ० २४ १ ६ | 0 छ |017 0 - - - १५५ पर्याप्ति ६ ६ ६ ६ ६ १५६ अनुव्रत १२ १५७ महाव्रत ५ महावत ५ ० ०० ०० सम्यक्त्व. सामायिक १, श्रुतसामा- . यिक २, देश व्रतीसामा- . यिक ३ सर्वव्रतीसामायिक ४ wwwmom as woman wwww Mororm anorarm Manoran Morore aroorn ororoom Manorm मोहना बंध १५९२१ । २२ ने बंधे २१ ने बंधे १७ ने बंधे १७ ने बंधे १३ ने बंधे भंग २ |९ ने बंधे भंग २ ९ ने बंधे |९ ने बंधे भंग २ भंग ४ भंग २ भं.१,३ ने १, ५ने १,४ ने बं 'भंग बावीसवो बंधस्थाने पीछे लिख्या है । अथ भंगस्वरूप-हास्य रति वा अरति शोक २ ए दो भंग पुरुषवेद साथ; एवं २ स्त्रीवेद साथ; एवं २ भंग नपुंसकवेद संघाते; एवं २२ ने बंधे भंग ६. इक्कीसेके बंधे भंग ४-अरति शोक पुरुषवेद १, हास्य रति पुरुषवेदसे बंधे २; एवं पुरुषवेद काढीने स्त्रीवेदसुं दो भंग करणा; एवं ४. नपुंसकवेदका बंध सास्वादने नही. १७ ने बंधे भंग २-हास्य रति पुरुषवेद १, अरति शोक पुरुषवेद २; एवं २; स्त्रीका बंध नही. तेराके बंधमे एही दो भंग जानने. छठे गुणस्थानमे ९ के बंधमे एही दो भंग; एवं ९ के बंधमे, आगे पिण ए ही दो भंग अने नवमेमे ५ ने बंधे एक भंग १,४ ने बंधे १ भंग, ३ ने बंधे भंग १, २ ने बंधे भंग १, अने १ ने बंधे भंग १. यद्यपि सातमे आठमे गुणस्थानमे अरति १ शोकका बंध नहीं है तथापि भंगनी अपेक्षा सप्ततिसूत्रमे बंध कह्या है इति अलम् | २४ ११. मोहके उदय- ७२ २३ २४ २५ २६ २७ २४... ० भंग ९९५ ७३ २४ २४ । ७३ ७४ ७४२४ | . ple 0 : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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