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११२ श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१ जीवउसर प्रक- . . ..... १४४ तिका १२०/११७ १०१/७४ | ७७ ६७
बंध . पहिलेमे तीन टली-आहारकद्विक २, तीर्थकर १; एवं ३. दूजेमे १६ टलीमिथ्याल १, हुंड संस्थान १, नपुंसकवेद १, सेवात संहनन १, एकेन्द्रिय १, स्थावर १, आतप १, सूक्ष्म १, साधारण १, अपर्याप्त १. विकल ३, नरकत्रिक ३; एवं १६. वीजे २७ टलीअनंतानुबंधी ४, स्त्यानर्धित्रिक ३, दुर्भग १, दुःस्वर १, अनादेय १, संस्थान चार मध्यके, संहनन चार मध्यके, दुर्गमन १, स्त्रीवेद १, नीच गोत्र १, तिर्यंचत्रिक ३, उद्योत १, मनुष्य-आयु १, देव-आयु १; एवं २७. चौथेमे तीन मिली-तीर्थकर १, मनुष्य-देव-आयु २; एवं ३. पांचमे १० टली–अप्रत्याख्यान ४, प्रथम संहनन १, औदारिकद्विक २, मनुयत्रिक ३, एवं १०. छठे ४ टली–प्रत्याख्यान ४. सातमे ६ टली-अस्थिर १, अशुभ १, असाता १, अयश १, अरति १, शोक १; एवं ६. दो मिली-आहारकद्विक २ अने जो आयु १ टले तो ५८. आठमके प्रथम भागमे एवं ५८, दूजे भागमे निद्रा २ दो टले ५६, तीजे भागमे ३० टली-तीर्थकर १, निर्माण १, सद्गमन १, पंचेन्द्रिय १, तैजस १, कार्मण १, आहारकद्विक २, समचतुरस्र १, वैक्रियद्विक २, वर्णचतुष्क ४, अगुरुलघु १, उपघात १, पराघात १, उच्छ्वास १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, प्रत्येक १, स्थिर १, शुभ १, सुभग १, सुस्वर १, आदेय १; एवं ३०. नवमेके प्रथम भागमे ४ टली-हास्य १, रति १, भय १, जुगुप्सा १९ एवं ४ नवमेके दूजे भागमे पुरुषवेद १, संज्वलनत्रिक ३; एवं ४. दसमे एक संज्वलननो लोभ टल्यो. ग्यारमेमे १६ टली–ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अंतराय ५, यश १, उंच गोत्र १; एवं १६. आगे १ साता बांधे. १४ मे नही. उत्तर प्रक-
।... १४५ तिना उदय ११७ | १११ १००/१०४ ८७ ८१ ७६ ७२ | ६६ / ६० ५९ ७४२१२ | १२२ । । ।
। ___ पहिले ५ टली-आहारकद्विक २, तीर्थकर १, मिश्र मोहनीय १, सम्यक्ल-मोहनीय १. एवं ५ टली. दजे ६ टली-मिथ्याज १, आतप १, सूक्ष्म १, अपर्याप्त १, साधारण १; एवं ५, नरक-आनुपूर्वी १; एवं ६ टली. तीजेमे १२ टली-अनंतानुबंधी ४, एकेन्द्रिय आदि जाति ४, स्थावर १, आनुपूर्वी ३; एवं १२. अने चौथे मिश्र मोह १ टली अने ५ मिलीआनुपूर्वी ४, सम्यक्त्व-मोह १, पांचमे १७ टली-अप्रत्याख्यान ४, वैक्रियद्विक २, नरकत्रिक ३, देवत्रिक ३, मनुष्य आनुपूर्वी १, तियेगानुपूर्वी १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १; एवं १७. छठे ८ टली-प्रत्याख्यान ४, तिर्यंच-आयु १, तिर्यच-गति १, उद्योत १, नीच गोत्र १; एवं ८ टली अने आहारकद्विक मिले. सांतमें ५ टली-स्त्यानिित्रक ३, आहा
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