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तत्त्व ]
नवतत्त्वसंग्रह ३०. प्रथम पचीसने बंध बेइंद्रीने कह्या तीम जानना. मिथ्यात्वी मनुष्य अपर्याप्तमे जाणेवाला बांधे; नवरं मनुष्य-गति १, मनुष्य-आनुपूर्वी १, पंचेन्द्रिय जाति १. एकहनी(?) २९ का बंध तीन प्रकारे है-एक तो मिथ्यात्वगुणस्थान आश्री, दूजा सास्वादन आश्री, तीजा मिश्र अविरति आश्री. मिथ्यात्व, सास्वादनमे २९ का बंध बेइंद्रीवत् जानना. मिश्र अविरतिका २९ बंध लिखीये है-मनुष्य-गति १, मनुष्य-आनुपूर्वी १, पंचेन्द्रिय जाति १, औदारिकद्विक २, तैजस १, कार्मण १, समचतुरस्र संस्थान १, वज्रऋषभनाराच संहनन १, वर्ण आदि ४, अगुरुलघु १, उपघात १, पराघात १, उच्छ्वास १, प्रशस्त विहायोगति १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, प्रत्येक १, स्थिर वा अस्थिर १, शुभ वा अशुभ १, सुभग १, सुस्वर १, आदेय १ यश वा अयश १, निर्माण १; एवं २९. ए २९ मनुष्यगति योग्य तीर्थकरनाम प्रक्षेपे ३०. एवं ४ मनुष्य पर्याप्ताने है. हिवै देवगति प्रयोग चार बंधस्थान-२८।२९।३०।३१. देवगति १, देव-आनुपूर्वी १, पंचेन्द्रिय जाति १, वैक्रियद्विक २, तेजस १, कार्मण १, प्रथम संस्थान १, वर्ण आदि चार ४, अगुरुलघु १, पराघात १, उपघात १, उच्छ्वास १, शुभ चाल १, त्रस १, बादर १, प्रत्येक १, पयोप्त १, स्थिर वा अस्थिर १, शुभ वा अशुभ १, सुभग १, सुस्वर १, आदेय १, यश वा अयश १, निर्माण १; एवं २८. एह २८ नो बंध पहिलेसे छठे ताइ है. देवगतिके जाणेवाले आश्री तथा कोइ एक भंग अपेक्षा ७ मे, ८ मे गुणस्थाने है. एक तीर्थकरनाम प्रक्षेपे २९ का बंध देवगति योग्य चौथेसे आठमे ताइ ७८ मे भंग अपेक्षा तीर्थकर रहित कीजे. आहारकद्विक २ मिले ३०. ते यथा-देव-गति १, देव-आनुपूर्वी १, पंचेन्द्रिय १, क्रियद्विक २, आहारकद्विक २, तेजस १, कार्मण १, प्रथम संस्थान १, वर्ण आदि ४, अगुरुलघु १, पराघात १, उपधात १, उच्छ्वास १, शुभ चाल १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, प्रत्येक १, स्थिर १, शुभ १, सुभग १, सुखर १, आदेय १, यश १, निर्माण १; एवं ३०, सातमे, आठमे देवगति योग्य बांधे. तीर्थंकर नाम प्रक्षेपे ३१. सातमे, आठमे देवगति योग्य एक बांधे तो यशकीर्ति नवमे, दशमे तथा आठमे कोइ भागमे. इति नामकर्मस्य(गः) बन्धस्थानानि अष्टौ समाप्तानि.
२२४ २५/२६२११२४
२५।२७ २७ नामकर्मके उद-२७२८२५।२६ ५२ "यस्थान १२ २९ २९।३० ३१२८१२९ ३०३१ २९ २०
२८।२९ २८२ ३०३०३०३०३०२
२०२८/२९/९ ३ ०३१
२११२५
नामकर्मके उदयस्थान १२. ते यथा-२०२१।२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०॥३१॥ ८।९; एवं १२. प्रथम एकेन्द्रियने उदयस्थान पांच-ते कौनसे ? २१।२४।२५।२६।२७. प्रथम २१ उदय कहीये है. नामकर्मकी ध्रुवोदयी १२-तैजस १, कार्मण १, अगुरुलघु १,
१ आ प्रमाणे नामफर्मना आठ बंधस्थानो' समाप्त थयां.
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