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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१जीवनामकर्मके बंधस्थान ८. तिर्यंच-गति योग्य सामान्ये पांच बंधस्थान ते कौनसे ? २३॥ २५।२६।२९।३०, ए पांच बंधस्थान, प्रथम एकेन्द्रिय योग्य तीन बंध स्थान २३।२५।२६. प्रथम तेवीस कहे छै-तिर्यंच-गति १, तिर्यंच-आनुपूर्वी १, एकेन्द्रिय जाति १, औदारिक १, तैजस १, कार्मण १, हुंड संस्थान १, वर्ण आदि ४, अगुरुलघु १, उपघात १, स्थावर १, सूक्ष्म १ वा बादर १ एकतरं, अपर्याप्त १,प्रत्येक साधारण १ एकतरं १, अस्थिर १, अशुभ १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, निर्माण १; एवं २३ एकेन्द्रिय अपर्याप्त माहे जाणे(ने)वाला मिथ्यात्वी हुइ ते बांधे. एहीमे पराघात १, उच्छ्वास १ सहित कीजे तो २५ होइ है. अपर्याप्ताकी जगे पर्याप्ता जानना. ए २५ का बंध जे मिथ्यात्वी पर्याप्त एकेन्द्रियमे जाणेहारा बांधे; परं इतना विशेष स्थिर १ वा अस्थिर १, शुभ वा अशुभ, यश वा अपयश, इनमेसं तीन कोइ ले लेनी. अथ २६ का बंध तेरां तो पहली तेवीसकी लेनी अने परघात १, उच्छ्वास १, आतप १ वा उद्योत १, बादर १, स्थावर १, पर्याप्त १, प्रत्येक १, स्थिर १ वा अस्थिर १, शुभ वा अशुभ १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश वा यश १, निर्माण १; एवं २६. जो मिथ्यात्वी एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त माहे जाणेवाला है ते बांधे. हिवे बेइंद्रीने बंधस्थान तीन२५।२९।३०. प्रथम २५-तिर्यच-गति १, तिर्यच-आनुपूर्वी १, बेइंद्री जाति १, उदीरी (औदारिक १) १, तैजस १, कार्मण १, हुंड संस्थान १, सेवात संहनन १, औदारिक अंगोपांग १, वर्ण आदि ४, अगुरुलघु १, उपघात १, त्रस १, बादर १, अपर्याप्त १, प्रत्येक १, अस्थिर १, अशुभ १ दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, निर्माण १; एवं २५. जे मिथ्यात्वी अपर्याप्त बेइंद्रीमे जाणेवाला है ते बांधे. २५ मे चार घाले २९. पराघात १, उच्छ्वास १, अशुभ चाल १, दुःस्वर १; एवं ४ घाले २५ मे २९ होइ. अने अपर्याप्तने ठामे पर्याप्त जानना अने स्थिर वा अस्थिर एक १, शुभ वा अशुभ एक १, यश वा अयश १; एवं २९. जे मिथ्यात्वी बेइंद्री पयोप्ता माहे जाणेवाला है ते बांधे. तीसके बंधमे एक उद्योतनाम घाले ३०. एह पण उपरवत् बेइंद्रीमे जाणेवाला बांधे. एवं तेइंद्री, चौरिंद्री; नवरं जाति न्यारी न्यारी कहनी. हिवै तिर्यंच पंचेंद्रीने तीन बंधस्थान-२५।२९।३०. पचीसका बंध बेइंद्रीवत् विशेष जातिका. २९ का बंध-तिर्यच-गति १, तियेच-आनुपूर्वी १, पंचेन्द्रिय जाति १, औदारिकद्विक २, तेजस १, कार्मण १, छ संहननमे एक कोइ १, संस्थानमे छमे एक कोइ १, वर्ण आदि ४, अगुरुलघु १, उपघात १, पराघात १, उच्छ्वास १, प्रशस्त, अप्रशस्त गतिमे एकतर १, त्रस १, बादर १, पयोप्त १, प्रत्येक १, स्थिर वा अस्थिर १, शुभ वा अशुभ १, सुभग वा दुर्भग १, सुखर वा दुःखर १, आदेय अनादेय एकतरं १, यश वा अयश १, निर्माण १; एवं २९; जे मिथ्यात्वी पर्याप्त तिर्यंच पंचेन्द्रियमे जाणेवाला बांधे अने जो २९ का साखादनमे बांधे तो हुंड, छेवट्ट वर्जीने पांचा माहे एक कोइ लेना. ३० के बंधमे एक उयोत नाम प्रक्षेपे ३० जे मिथ्यात्वी तिर्यंच पंचेन्द्रिय पर्याप्तमे जाणेवाला बांधे. हिवै मनुष्यने तीन बंधस्थान-२५।२९।
१ बेमाथी एक। २ विशेष ।
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