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श्रीविजयानंदसूरिकृत
[१ जीवआनुपूर्वी १, मध्यके ४ संहनन, मध्यके ४ संस्थान, उयोत १, अशुभ चाल १, दुर्भग नाम १, दुःखर १, अनादेय १, नीच गोत्र १, एवं २० टली. चोथेमे तीन वधी-मनुष्य-आयु १, देव-आयु १, जिन-नाम १. पांचमे ६ टली-मनुष्यत्रिक ३, औदारिक १, औदारिकअंगोपांग १, प्रथम संहनन, एवं ६ टली. छठे पांचमे वत्. सातमे आहारक तदुपांग २ वधी, ६ टली-असातावेदनीय १, शोक १, अरति १, अस्थिर नाम १, अशुभ १, अयश १, एवं ६. आठमेके दो भाग. प्रथम भागमे एक देव-आयु टली. दूजे भागमे चारका बंध-साता. वेदनीय १, पुरुषवेद १, यशकीर्ति १, ऊंच गोत्र १, एवं ४ का बंध, शेष २३ टली. नवमेके प्रथम भागे ४, दूजे भागमे १ पुरुषवेद टला, तीनका बंध. देशमेऽपि एवं ३ का बंध. आगले तीन गुणस्थानमे एक सातावेदनीयका बंध. १४ मा अबंधक जानना. २२ ध्रुव उदयी २७ २६ २६ २६ २६ २६ २६ | २६ २६ २६ २६ २६ १२ ०
- ध्रुव उदयी प्रकृति २७ है, ते यथा-ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ५, चक्षु आदि ४, मिथ्यात्व १, तेजस १, कार्मण १, वर्ण १, गंध १, रस १, स्पर्श १, निर्माण १, अगुरुलघु १, स्थिर १, अस्थिर १, शुभ १, अशुभ १, अंतराय ५, एवं २७. एह प्रकृति जां लगे उदय है तां लगे अवश्य उदय है, अंतर न पडे; इस कारणसे इनका नाम 'ध्रुव उदयी' कहीये. दूजेमे मिथ्यात्वमोहनीय टली. एवं यावत् १२ मे गुणस्थान ताई २६ का उदय. तेरमे १४ टली-पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, पांच अन्तराय, एवं १४. चौदमे ध्रुव उदयी कोइ प्रकृति नही है.... २३ अध्रुव उदयी ९० ८५ ७४ | ७८ ६१ ५५ ५० ४६ ४० | ३४ | ३३ ३३ ३०/ १२ __अध्रुव उदयी ९५ प्रकृति है, तद्यथा-निद्रा ५, वेदनीय २, मोहकी २७ मिथ्यात्व विना, आयु ४, गति ४, जाति ५, शरीर ३, अंगोपांग ३, संहनन ६, संस्थान ६, आनुपूर्वी ४, विहायोगति २, पराघात १, उच्छ्वास १, आतप १, उद्योत १, तीर्थकर १, उपघात १, प्रसादि ८, स्थिर १, शुभ १, ए दो विना आठ, स्थावर ८, अस्थिर १, अशुभ १, ए दो विना गोत्र २; एवं सर्व ९५. कदेक उदय हूइ, कदेक उदय नही होय; इस वास्ते 'अध्रुव उदयी' कहीये. पहिलेमे ५ नही-सम्यक्त्वमोह १, मिश्रमोह १, आहारक शरीर १, तदुपांग १, जिननाम १, एवं ५ नही. दूजेमे ५ नही-नरक-आनुपूर्वी १, आतप १, सूक्ष्म नाम १, साधारण १, अपर्याप्त १; एवं ५ नही. तीजेमे १२ टली-अनंतानुबंधी ४, तीन आनुपूर्वी, च्यार जात, स्थावर नाम १, एवं १२ टली; अने एक मिश्र मोहनीय वधी. चौथेमे चार आनुपूर्वी, सम्यक्त्वमोहनीय १, एवं ५ वधी, अने एक मिश्र मोहनीय टली. पांचमेमे १७ टली
१ दशमामां पण भा प्रमाणे। Jain Education International
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