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श्रावक धर्म-अणुव्रत
आठवां अनर्थदंडविरमण व्रत
क्रीडा कुतूहल के लिये पशु पक्षी आदि को पीञ्जरे में नहीं डालना, और हिंसक जानवर का संग्रह करना उचित नहीं है।
हाथी, घोडा, सांड, मुर्गा, बंदर, सर्प, नोलिया आदि की परस्पर की लड़ाईयां देखने नहीं जाना, मार्ग में जाते आते अनायास दृष्टि में आ जाय तो जयणा । किसी को सूली फांसी पर चढाते समय देखने नहीं जाना। बिना कारण हरि वनस्पति को चूंटना नहीं, और घट्टी, ऊखल, मूसल, हल, मांगे हुए नहीं देना, घर के काम में लिये जाय उस की जयणा ।
इस व्रत के पांच अतिचार हैं (१) कंदर्प-विषय विकार की वृद्धि हो, ऐसी कुचेष्टा करना (२) कोकुच्यविषयविकार-काम उत्पन्न हो वैसी वार्ता करना (३) मौखर्य-मुख से हास्यादिक-स्मित करके किसी को दुःख पहुंचाना वचन बाण से आघात पहुंचाना । (४) संयताधिकरण-निज के am -
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