________________
४०
श्रावक धर्म - अणुव्रत
छठा दिशा परिमाण व्रत
चार दिशा, चार विदिशा, उर्ध्व और अधो मिलाने से दश दिशायें होती है । इन दिशाओं में अमुक माइल तक पर्यटन करना, तार, पत्र, अखबार, औषधी मंगवाते और खेपिया भेजना हो तो जयगा । इस व्रत में पांच अतिचार इस प्रकार हैं । (१) उर्ध्वदिकूपरिमाणातिक्रमनियम से अधिक ऊँचा जाना (२) अधोदिकपरिमाणातिक्रमनियम से अधिक नीचे जाना (३) तिच्र्च्छादिकूपरिमाणातिक्रम - चार दिशा विदिशा में नियम से अधिक जाना (४) क्षेत्रवृद्धि - सर्व दिशाओं के माइल को जोड कर एक दिशा में अधिक जाना (५) स्मृति अंतर्धान - नियम विस्मरण हो जाने से संदेह हो जाने पर भी अधिक जाना ।
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org