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श्रावक धर्म-अणुव्रत
चोथा स्थूल मैथुन विरमण व्रत- इस व्रत को ग्रहण करते समय ठीक तरह से समझ लेना चाहिए। जिस से व्रत निभाने में दृषण नहीं आवे । इस व्रत को लेते समय पुरुष निज के लिये, स्त्री निज के लिये लिया हुआ समझे । स्वस्त्री में संतोष करे और परस्त्री का सर्वथा त्याग करे, स्वस्त्री पति में संतोष करे
और पर पुरुष का सर्वथा त्याग करे । विशेष तियञ्च अथवा नपुंसक के साथ विषय सेवन का सर्वथा त्याग करे । स्वप्नादि में स्खलना हो जाय तो जयणा । स्वस्त्री में भी हो सके तो पांच तिथियों का शियल पाले और भावना शुद्ध रखे।
इस व्रत में पांच अतिचार लगना संभव है। (१) अपरिग्रहीता गमन-स्त्री किसी की ग्रहण की हुई नहीं हो उस के साथ सम्बन्ध करने से (२) ईत्वरपरिग्रहितागमनअमुक समय के लिये वैश्या को किसी ने रखी हो उस के साथ विषय सेवन करे तो अतिचार लगता है, परन्तु स्वदारा संतोषी के लिये तो यह दोनों अतिचार अनाचार में जाते हैं। (३) अनङ्ग क्रीडा-अङ्ग-उपाङ्ग विषय दृष्टि
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