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श्रावक धर्म - अणुव्रत
त्यागी, और स्वदारा में भी प्रमाण आदि उपभोग से रहने को समझाया। पांचवां परिग्रह परिमाण व्रत में भी धन सम्पत्ति अमुक प्रमाण में रख कर विशेष को शुभ कामों में व्यय करने का नियम लेकर पालन करना बताया । इन सब प्रकार के व्रतों में आगार अर्थात् छूट रखकर नियम लेना बताया है। यहां शङ्का होती है कि आगार रख नियम कराने वाले को छूट रखी हुई बातों की क्रिया लगती है या नहीं, क्योंकि नियम में छूट रखने से नियमदाता की सम्मति स्पष्ट रूप से होजाती है । शङ्का उचित भी है । इस विषय को समझाने के लिए एक उदाहरण है कि एक धनपति सेठ किसी कारण से कायदे की चुङ्गल में गये । विषय गंभीर था इसलिए बचाव के लिए धारा शास्त्री खड़े किये गये । धारा शास्त्री ने कायदे की सूक्ष्म बातें बताकर सेठ को बचाने का प्रयत्न किया । ऐसा करते हुए भी न्यायाधीश के ध्यान में बात नहीं बैठी । और दीर्घकालीन कारावास देने के उद्गार निकाले । वकील ने समय सूचकता काम में लेकर कहा कि मेरा मुवक्किल निर्दोष होने के सिवाय आबरूवाला है और जीवन में पहिली बार अदालत का मुख देखा है, इनका व्यव
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