SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन समवायाङ्ग में यह बताया गया है कि अनेक देवताओं, राजाओं व राजऋषियों ने भगवान् महावीर से विविध प्रकार के प्रश्न पूछे। भगवान् ने उन सभी प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिये। इस आगम में स्वसमय, परसमय, जीव, अजीव, लोक, अलोक आदि की व्याख्या की गई है५२ | आचार्य अकलङ्क के मन्तव्यानुसार प्रस्तुत आगम में जीव है या नहीं? इस प्रकार के अनेक प्रश्नों का निरूपण किया गया है५३। आचार्य वीरसेन ने बताया है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति में प्रश्नोत्तरों के साथ ही ९६000 छिन्नछेदनयों५४ से ज्ञापनीय शुभ और अशुभ का वर्णन है५५/ - प्रस्तुत आगम में एक श्रुतस्कन्ध, एक सौ एक अध्ययन, दस हजार उद्देशनकाल, दस हजार समुद्देशनकाल, छत्तीस हजार प्रश्न और उनके उत्तर, २८८000 पद और संख्यात अक्षर हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति की वर्णनपरिधि में अनंत गम, अनंत पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर आते हैं। आचार्य अभयदेव ने पदों की संख्या २८८000 बताई है तो समवायाङ्ग में पदों की संख्या ८४000 बताई है। व्याख्याप्रज्ञप्ति के अध्ययन 'शतक' के नाम से विश्रुत हैं। वर्तमान में इसके १३८ शतक और १९२५ उद्देशक प्राप्त होते हैं। प्रथम ३२ शतक पूर्ण स्वतंत्र हैं, तेतीस से उनचालीस तक के सात शतक १२-१२ शतकों के समवाय हैं। चालीसवाँ शतक २१ शतकों का समवाय है। इकतालीसवाँ शतक स्वतंत्र है। कुल मिलाकर १३८ शतक हैं। इनमें ४१ मुख्य और शेष अवान्तर शतक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy