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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २४९ ३०. अत्तकडे दुक्खे, नो परकडे।
.-१७५ आत्मा का दुःख स्वकृत है, अपना किया हुआ है, परकृत अर्थात्
किसी अन्य का किया हुआ नहीं है। ३१. जं मे तव-नियम-संजम-सज्झाय-झाणा
ऽवस्सयमादीएसु जोगेसु जयणा, से तं जत्ता। -१८।१० तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान, आवश्यक आदि योगों में जो यतना विवेक युक्त प्रवृत्ति है, वही मेरी वास्तविक यात्रा है।
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