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भगवती सूत्र : एक परिशीलन २४७ जो जीव है वह निश्चित रूप से चैतन्य है,
और जो चैतन्य है वह निश्चित रूप से जीव है। १५. समाहिकारए णं तमेव समाहिं पडिलब्भइ।
-७१ समाधि (सुख) देने वाला समाधि पाता है। १६. दुक्खी दुक्खेणं फुडे,
नो अदुक्खी दुक्खेणं फुडे। जो दुःखित = कर्मबद्ध है, वही दुःख = बन्धन को पाता है,
जो दुःखित = बद्ध नहीं है, वह दुःख = बन्धन को नहीं पाता। १७. अहासुत्तं रीयमाणस्स इरियावहिया किरिया कज्जई
उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ॥ -७।१ सिद्धान्तानुकूल प्रवृत्ति करने वाला साधक ऐपिथिक (अल्पकालिक) क्रिया का बंध करता है। सिद्धान्त के प्रतिकूल प्रवृत्ति करने वाला
सांपरायिक (चिरकालिक) क्रिया का बंध करता है। १८. जीवा सिय सासया सिय असासया। ..... दिव्वट्ठयाए सासया, भावट्ठयाए असासया।
-७२ जीव शाश्वत भी हैं, अशाश्वत भी। द्रव्यदृष्टि (मूल स्वरूप) से शाश्वत हैं, तथा भावदृष्टि (मनुष्यादि
पर्याय) से अशाश्वत। १९. भोगी भोगे परिच्चयमाणे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ।
-७७ भोग-समर्थ होते हुए भी जो भोगों का परित्याग करता है वह कर्मों
की महान् निर्जरा करता है, उसे मुक्तिरूप महाफल प्राप्त होता है। २०. हस्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे।
___ आत्मा की दृष्टि से हाथी और कुंथुआ-दोनों में आत्मा एक समान है। २१. जीवियास-मरण-भयविप्पमुक्का।
-८७ सच्चे साधक जीवन की आशा और मृत्यु के भय से सर्वथा मुक्त होते
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