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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन १९५ महावीर- गांगेय ! पांच प्रकार का कहा है-एकेन्द्रिय योनिक प्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रिय योनिक प्रवेशनक। उसके पश्चात् भगवान ने विस्तृत रूप से उसके सम्बन्ध में वर्णन किया। गांगेय-भन्ते ! मनुष्य प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? महावीर- वह दो प्रकार का है- संमूर्छिम मनुष्य प्रवेशनक और गर्भज मनुष्य प्रवेशनक। इनका भी भगवान् ने सविस्तृत विवेचन किया। गांगेय-भगवन् ! देवप्रवेशनक कितने प्रकार का है ? महावीर-गांगेय ! देवप्रवेशनक चार प्रकार का है-भवनवासी देवप्रवेशनक, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवप्रवेशनक। इनके सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन किया। गांगेय- भगवन् ! सत् नारक उत्पन्न होते हैं या असत् ? इसी प्रकार तिर्यंच, मनुष्य और देव सत् उत्पन्न होते हैं या असत् ? ___ महावीर- सभी सत् उत्पन्न होते हैं, असत् की उत्पत्ति नहीं होती। तथा सभी सत् ही मरते हैं असत् नहीं। गांगेय- भन्ते ! सत् की उत्पत्ति कैसी? और मरे हुए की सत्ता किस प्रकार ? महावीर- लोकनेता, पुरुषादानीय पार्श्व ने लोक को शाश्वत बताया है। अतः उसमें सर्वथा असत् की उत्पत्ति नहीं होती और सत् का सर्वथा नाश भी नहीं होता। ___ गांगेय- भन्ते ! आप जो कह रहे हैं वह स्वयं आत्म-प्रत्यक्ष से जानते हैं या किसी हेतु प्रयुक्त अनुमान से अथवा आगम से जानकर कहते हैं ? महावीर- गांगेय ! यह सब मैं स्वयं जानता हूँ। किसी भी अनुमान अथवा आगम के आधार पर नहीं कहता। आत्म-प्रत्यक्ष बात ही कह रहा हूँ। गांगेय- भगवन् ! अनुमान और आगम बिना आप स्वयं इस विषय को कैसे जान सकते हैं? __ महावीर- गांगेय ! केवली का ज्ञान अनावृत होता है, वह सर्वतः मित को भी जानता है और अमित को भी जानता है। केवली का ज्ञान प्रत्यक्ष होने से उसमें सर्व वस्तुतत्त्व प्रतिभासित होते हैं। अर्हत् पार्श्व के वचन का उद्धरण तो मैंने तुम्हारी श्रद्धा को सहारा देने के लिए दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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