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१९० भगवती सूत्र : एक परिशीलन
महावीर- नहीं, ऐसा नहीं है। जीव ही पापकर्मों से संयुक्त होते हैं, अजीव नहीं।
भगवान का उत्तर सुनकर कालोदायी का संदेह दूर हो गया, वह भगवान के पास प्रव्रजित हो गया।
एक बार कालोदायी श्रमण ने भगवान महावीर से प्रश्न कियाभगवन् ! जीव अशुभ फल वाले कर्मों को स्वयं किस प्रकार करता है? __ महावीर- जैसे कोई मनुष्य स्निग्ध और सुगंधित विष मिश्रित मादक पदार्थ का भोजन करता है, तब वह भोजन उसे अत्यन्त प्रिय लगता है और उसका बड़े चाव से सेवन करता है, किन्तु उससे होने वाली हानि को भूल जाता है। इसी प्रकार जब हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील, परिग्रह, क्रोध-मानमाया-लोभ और राग-द्वेष आदि पापों का सेवन करता है, तब वे कार्य उसे मधुर लगते हैं। पर उससे जो पापकर्म बांधता है उसका फल अनिष्ट और अप्रिय होता है।
कालोदायी-भन्ते ! जीव शुभ कर्मों को किस प्रकार बांधता है? ।
महावीर- कालोदायिन् ! जैसे कोई मानव औषधिमिश्रित भोजन खाता है, वह भोजन तीखा व कड़वा होने से रुचिकर न होने पर भी बल-वीर्यवर्द्धक होता है उसी प्रकार अहिंसा, सत्य आदि शुभ प्रवृत्तियाँ प्रथम अमनोरम होते हुए भी परिणाम में सुखकारी होती हैं।
कालोदायी-भन्ते ! अग्नि को प्रज्वलित करने वाला विशेष आरंभी है या अग्नि को शान्त करने वाला? ___ महावीर- कालोदायिन् ! अग्नि को शांत करने वाले की अपेक्षा प्रज्वलित करने वाला विशेष आरंभी है। वह अग्नि का समारंभ करता हुआ अग्नि की हिंसा कम करता है शेष पृथ्वीकाय आदि पांच प्रकार के जीवों की हिंसा अधिक करता है। अग्नि शांत करने वाला यद्यपि अग्नि जीवों की हिंसा अधिक करता है तथापि शेष जीवों का वह रक्षक होता है। इसलिये आग जलाने वाला अधिक आरंभ करता है और बुझाने वाला कम। ___ कालोदायी-भन्ते ! क्या अचित्त पुद्गल उद्योतित होते हैं? यदि होते हैं तो कैसे?
महावीर-अचित्त पुद्गल भी प्रकाश करते हैं। जब कोई तेजोलेश्याधारी मुनि तेजोलेश्या का प्रयोग करता है, तो वे पुद्गल दूर दूर तक प्रसरित
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