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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन १८३ महावीर - गौतम ! द्रव्य दृष्टि से परमाणु शाश्वत है, वह सदा से है और सदा काल रहेगा। पर्याय दृष्टि से परमाणु अशाश्वत है, क्योंकि पर्याय में परिवर्तन होता रहता है। अर्थात् ऐसा संभव है, कि अतीत काल में किसी एक समय में जो परमाणु पुद्गल रूक्ष हो वही अन्य समय में अरूक्ष हो जाय। पुद्गल स्कन्ध भी ऐसा हो सकता है। अथवा स्वभाव से या अन्य के प्रयोग द्वारा किसी पुद्गल में अनेक वर्ण परिणाम हो जाय और वैसा परिणाम नष्ट होकर बाद में एक वर्ण परिणाम भी उसमें हो सकता है। इस प्रकार पर्याय परिवर्तन के कारण पुद्गल की अनित्यता भी सिद्ध होती है और अनित्यता के होते हुए भी उसकी नित्यता में कोई बाधा नहीं आती। -भग. शतक १४, उ. ४, सू. ५ पंचास्तिकाय रूपी या अरूपी राजगृह के बाहर गुणशील चैत्य के सन्निकट कुछ अन्यतीर्थिक पंचास्तिकाय के विषय में चर्चा कर रहे थे। उन्होंने भगवान के अनन्य उपासक “महुक' को जाते हुए देखा, तो वे सब उसके पास जाकर पूछने लगे - मद्दुक ! तुम्हारे धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर पंचास्तिकाय का प्रतिपादन करते हैं। उनमें एक को जीव शेष चार को अजीव कहते हैं। एक को रूपी और पाँच को अरूपी कहते हैं। इस सम्बन्ध में तुम्हारे पास क्या प्रमाण है ? महुक - इनके कार्यों से इनका अनुमान किया जा सकता है। संसार के कुछ पदार्थ दृश्य व कुछ अदृश्य होते हैं जो अनुभव, अनुमान और कार्य से जाने जाते हैं। अन्यतीर्थिक - मद्दुक ! तू कैसा श्रमणोपासक है जो अपने धर्माचार्य द्वारा कथित द्रव्यों को जानता और देखता नहीं, फिर भी मानता है ? महुक - आयुष्मन् ! सनसनाता हुआ पवन चल रहा है, क्या तुम उसका रंग रूप देखते हो ? अन्यतीर्थिक - सूक्ष्म होने से हवा का रूप देखा नहीं जाता। महुक - गंध के परमाणु जो घ्राणेन्द्रिय के विषय होते हैं, अरणिकाष्ठ में रही हुई जो अग्नि है, इनके रंग-रूप को तुम देखते हो ? जिनको तुम नहीं देख सकते क्या वह वस्तु नहीं है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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