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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १६७
इसके बाद तो उसका पुत्र, फिर उसका भी पुत्र, इस प्रकार एक के बाद एक हजार वर्ष की आयु वाली सात पीढ़ी गुजर जायें, इतना ही नहीं उनके नाम गोत्र भी विस्मृति के गर्भ में विलीन हो जायँ । तब तक वे देवता चलते रहें तो भी लोक का अन्त नहीं प्राप्त कर सकते।
गौतम - भगवन् ! अलोक कितना बड़ा है ?
भगवान - गौतम ! इस मनुष्य क्षेत्र की लम्बाई और चौड़ाई पैंतालीस लाख (४५,००,०००) योजन है।
उस समय दस महर्द्धिक देव इस मनुष्य लोक को चारों ओर घेर कर खड़े हों, उनके नीचे आठ दिशाकुमारियां आठ बलिपिण्डों को ग्रहण कर मानुषोत्तर पर्वत के बाहर की दिशाओं में फैंकें तो उनमें से एक देव उन बलिपिण्डों को भूतल पर गिरने से पहले ही ग्रहण कर ले। ऐसे शीघ्रगामी वे दसों देव लोक के अंत से यावत् (यह कल्पना है जो संभव नहीं है) पूर्वादि चारों दिशाओं में जावें । उसी समय एक गाथापति के घर एक लाख वर्ष की आयुष्य वाला एक बालक उत्पन्न हुआ। क्रमशः उस बालक के माता-पिता दिवंगत हुए, उसका भी आयुष्य क्षीण हो गया, उसकी अस्थि और मज्जा नष्ट हो गई और उसकी सात पीढ़ियों के पश्चात् वह कुलवंश भी नष्ट हो गया, नाम - गोत्र तक नष्ट हो गये। इतने समय तक चलते रहने पर भी वे देव अलोक के अन्त को प्राप्त नहीं कर सकते ।
गौतम - भगवन् ! उन देवों का गत क्षेत्र अधिक है, या अगत- क्षेत्र ?
भगवान - गौतम ! गत-क्षेत्र थोड़ा है और अगत क्षेत्र अधिक है। गत क्षेत्र से अगत - क्षेत्र अनन्त गुणा अधिक है। अगत क्षेत्र से गत- क्षेत्र अनन्तवें भाग है । गौतम ! इतना विराट् है, अलोक !
- भग. शतक ११, उ. १०, सूत्र २०
लोक में जीव सर्वत्र जन्मा है
गौतम भन्ते ! लोक कितना विस्तीर्ण है ?
भगवान - गौतम ! लोक बहुत विस्तार वाला है। वह पूर्व दिशा में असंख्य कोटा- कोटि योजन है। इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में भी असंख्य कोटा - कोटि योजन है। और इसी प्रकार ऊर्ध्व - अधोदिशा में भी असंख्य कोटा- कोटि योजन आयाम विष्कम्भ ( लम्बाई-चौड़ाई) वाला है ।
गौतम भन्ते ! इस विराट् लोक में परमाणु पुद्गल जितना भी आकाश प्रदेश ऐसा है जहां इस जीव ने जन्म-मरण न किया हो ?
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