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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १६५ भगवान - गौतम ! तीन प्रकार का कहा गया है-अधोलोक, तिर्यग्लोक और ऊर्ध्वलोक ।
गौतम - भगवन् ! अधोलोक का कैसा संस्थान है ?
भगवान - गौतम ! त्रया ( तिपाई) के आकार का है। गौतम - भगवन् ! तिर्यग्लोक का संस्थान कैसा है ? भगवान - गौतम ! झालर के आकार का है। गौतम - भगवन् ! ऊर्ध्वलोक का कैसा संस्थान है ? भगवान - गौतम ! ऊर्ध्व मृदंग के आकार का है। गौतम - भगवन् ! अलोक का कैसा संस्थान है ?
भगवान - गौतम ! अलोक का संस्थान पोले गोले के समान कहा है।
-भग. शतक ११, उ. १०, सूत्र १-१०
कर्म कौन बांधता है ?
जिन जीवों के पूर्ण कर्म नष्ट हो चुके हैं उन्हें कर्म का बन्धन नहीं होता । पूर्व कर्म से बंधा हुआ जीव ही नूतन कर्मों का बंध करता है । ६
मोह कर्म के उदय से जीव राग-द्वेष में परिणत होता है तब वह अशुभ कर्मों का बन्ध करता है । ७
मोह रहित प्रवृत्ति करते हुए तेरहवें गुणस्थानवर्ती जीव शरीर नाम कर्म के उदय से शुभकर्म का बंध करता है।
नवीन कर्म बंध का कारण पूर्व-बंधन न हो तो मुक्त आत्मा भी कर्म से बंधे बिना नहीं रह सकता अतः जो कर्म से बंधा हुआ है वही बंधता है। गौतम ने पूछा-भगवन् ! दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है ?
महावीर ने कहा- गौतम ! दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है, अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट नहीं होता । दुःख का स्पर्श, पर्यादान ( ग्रहण), उदीरणा, वेदना और निर्जरा दुःखी जीव करता है, अदुःखी जीव नहीं करता ।
-भगवती ७ /१/१६
गौतम ने जिज्ञासा प्रस्तुत की- भगवन् ! कर्म कौन बांधता है ? भगवान ने समाधान दिया - गौतम ! असंयत, संयतासंयत, और संयतये सभी कर्म का बंध करते हैं।
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