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धर्म और दर्शन
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श्रवण का फल शील और श्रुत का समन्वय
• तीर्थ
सामायिक और भाण्डोपकरण • व्यवहार
श्रवण का फल गौतम गणधर भगवान महावीर से पूछते हैं :
प्रश्न-हे भगवन् ! तथारूप श्रमण माहन की सेवा करने वाले को सेवा का क्या फल मिलता है?
भगवान बोले-हे गौतम ! उसे धर्मश्रवण करने का फल मिलता है। प्रश्न-हे भगवन् ! धर्मश्रवण का क्या फल होता है? उत्तर-गौतम ! धर्मश्रवण करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञान का फल क्या है ? उत्तर-हे गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान-हेय उपादेय का विवेक है।
विज्ञान का फल “प्रत्याख्यान" प्रत्याख्यान का फल “संयम" संयम का फल "अनानव-कर्मों का रुक जाना" अनास्रव का फल “तप" तप का फल "व्यवदान-पूर्वकृत कर्म का विनाश" व्यवदान का फल “अक्रिया" अक्रिया का फल “निर्वाण" है, और सिद्धगति में जाना ही निर्वाण का सर्वान्तिम प्रयोजन है।
-भग. शतक २, उ. ५, सूत्र ३७-४६
साधुमार्गी संस्कृति रक्षक संघ, सेलाना द्वारा प्रकाशित भगवती सूत्र के अनुसार सूत्र संख्या आदि रखी गई है।
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