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________________ १४८ भगवती सूत्र : एक परिशीलन २३५. स्थानांगसूत्र ९५ २३६. वैशेषिकदर्शन २/२/६ से ९ २३७. पंचाध्यायी २/१/२३ २३८. युक्तिस्नेहप्रपूरणी सिद्धान्तचन्द्रिका १/१/५/५ २३९. सांख्यप्रवचन २/१२ २४०. (क) दर्शन अने चिन्तन, भाग २, पृष्ठ १०२८, पं. सुखलाल संघवी (ख) योगदर्शन पा. ३, सूत्र ५२ का भाष्य २४१. अट्ठशालिनी १।३।१६ २४२. सुत्तनिपात २६/२८ २४३. सुत्तनिपात २६।२५-२७ २४४. बाइबल ओल्ड टेस्टामेंट, निर्गमन २० २४५. अंगुत्तरनिकाय ३/३७ २४६. दर्शन और चिन्तन, भाग-२, पृ. १०५ २४७. “भिक्खू विभज्जवायं च वियागरेज्जा" -सूत्रकृतांग १/१४/२२ २४८. दीघनिकाय ३३, संगितिपरियाय सुत्त में चार प्रश्नव्याकरण २४९. आगमयुग का जैनदर्शन, पृ. ५४, पं. दलसुख मालवणिया २५०. आवश्यकचूर्णि, पृष्ठ ५३७ से ५३८ २५१. जैन साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग पहला, पृष्ठ २११ २५२. (१) छव्वरिसो पव्वइयो-भगवती टीका ५-३ (२) अन्तकृद्दशांग, ६-१४ २५३. "कुमारसमणे" त्ति षड्वर्षजातस्य तस्य प्रव्रजित्वात्, आह च-“छच्चरिसो पव्वइओ निग्गंथं रोइऊण पावयणं" ति, एतदेव आश्चर्यमिह अन्यथा वर्षाष्टकादारान प्रव्रज्या स्यादिति। -भगवती सटीक प्र. भाग, श. ५, उद्दे ४, सूत्र १८८, पत्र २१९-२ २५४. आचारांग द्वि. श्रुतस्कन्ध, पन्ना ३८८-१-२ समवायांग ८३, पत्र ८३-२ २५६. स्थानांगसूत्र ४११ स्था. ५, पन्ना ३०९ २५७. आवश्यकनियुक्ति पृष्ठ ८0 से ८३ २५८. गर्भ प्रणीते देवक्या रोहिणी योगनिद्रया। अहो विनसितो गर्भ इति पौरा विचक्रशुः ॥१५॥ -श्रीमद्भागवत स्कन्ध १०, पृष्ठ १२२-१२३ २५५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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