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१४० भगवती सूत्र : एक परिशीलन ४३. (क) अध्यात्मयोगाधिगमेन देवं मत्वा धीरो हर्ष-शोकौ जहाति।
-कठोपनिषद् १२ १२ (ख) तां योगमितिमन्यन्ते स्थिरामिन्द्रियधारणाम्।
अप्रमत्तस्तदा भवति योगो हि प्रभवाप्ययो॥-कठोपनिषद् २ । ३।११ (ग) तैत्तिरीयोपनिषद् २ | १४ ४४. योगराजोपनिषद्, अद्वयतारकोपनिषद्, अमृतनादोपनिषद्, त्रिशिख
ब्राह्मणोपनिषद्, दर्शनोपनिषद, ध्यानबिन्दूपनिषद्, हंस, ब्रह्मविद्या, शाण्डिल्य, वाराह, योगशिख, योगतत्त्व, योगचूडामणि, महावाक्य, योगकुण्डली, मण्डलब्राह्मण, पाशुपतब्राह्मण, नादबिन्दु, तेजोबिन्दु, अमृतबिन्दु,
मुक्तिकोपनिषद्- इन सभी २१ उपनिषदों में योग का वर्णन हुआ है। ४५. समवायाङ्ग, सूत्र ९३ ४६. नन्दीसूत्र ८५ ४७. तत्त्वार्थवार्तिक १/२० ४८. षट्खंडागम, खण्ड १, पृष्ठ १०१ ४९. कषायपाहुड, प्रथम खण्ड, पृष्ठ १२५ ५०. (क) “वि-विविधा, आ-अभिविधिना, ख्या-ख्यानाति भगवतो महावीरस्य
गौतमादीन् विनेयान् प्रति प्रश्नितपदार्थप्रतिपादनानि व्याख्याः, ताः
प्रज्ञाप्यन्ते, भगवता सुधर्मस्वामिना जम्बूनामानमभि यस्याम्। (ख) विवाह-प्रज्ञप्ति अर्थात् जिसमें विविध प्रवाहों की प्रज्ञापना की गई है
वह विवाहप्रज्ञप्ति है। (ग) इसी प्रकार 'विवाहपण्णत्ति' शब्द की व्याख्या में लिखा है
'विबाधाप्रज्ञप्ति' अर्थात् जिसमें निर्बाध रूप से अथवा प्रमाण से
अबाधित निरूपण किया गया है, वह विवाहपण्णत्ति है। ५१. महायान बौद्धों में प्रज्ञापारमिता जो ग्रन्थ है उसका अत्यधिक महत्त्व है अतः अष्ट प्राहसिका प्रज्ञापारमिता का अपर नाम भगवती मिलता है।
-देखिए-शिक्षा समुच्चय, पृ. १०४-११२ ५२. समवायाङ्ग, सूत्र ९३ ५३. तत्त्वार्थवार्तिक, १२० ५४. वह व्याख्यापद्धति, जिसमें प्रत्येक श्लोक और सूत्र की स्वतंत्र व्याख्या की
जाती है और दूसरे श्लोकों और सूत्रों से निरपेक्ष व्याख्या भी की जाती है।
वह व्याख्यापद्धति छित्रछेदनय के नाम से पहचानी जाती है। ५५. कंषायपाहुड भाग १, पृ. १२५ ५६. एत्थ पुणं णियमो णत्थि, परमागमुवजोगम्मि णियमेण मंगल फलोवलंभादो।
-कषायपाहुड, भाग १, गा. १, पृ. ९
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